जीवन का अंतिम उद्देश्य क्या है?
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प्रश्न: आचार्य जी, हम जिसके पीछे भाग रहे हैं वो अल्टीमेट डिज़ायर (आख़िरी इच्छा) क्या है?
आचार्य प्रशांत जी: तुम भाग रहे हो तो कोई तो उद्देश्य होगा। और अगर बिना उद्देश्य जाने भाग रहे हो, तो फिर स्पष्ट है कि क्या उद्देश्य है। एक आदमी जो बिना उद्देश्य जाने भाग रहा हो, उसके लिए तो एक ही उद्देश्य है अभी, क्या? पता करना कि क्या उद्देश्य है।
ये नहीं पता कि जाना कहाँ है, और गाड़ी चल रही है एक सौ साठ किलोमीटर प्रति घंटे पर, तो इस वक़्त क्या उद्देश्य होना चाहिए? कि थोड़ा गति धीमी करके पता तो कर लो जाना कहाँ है।
हाँ, कहीं को जाना तो था शायद, गाड़ी इसीलिए चलाई थी। पर गाड़ी चलाने की धुन में यही भूल गए कि जाना कहाँ था। तो ऐसा करते हैं गाड़ी थोड़ी धीमी करते हैं, पता तो कर लें कहाँ को निकले थे, कहाँ पहुँचना था।
तुमसे ये तो मैं कह नहीं सकता कि तुम्हें कहीं जाना नहीं है। तुम्हारी बेक़रारी सबूत है कि तुम कहीं तो पहुँचना चाहते हो, नहीं तो इतनी कशिश नहीं होती। इतनी तड़प से कहीं को तो दौड़े चले जा रहे हो। कुछ चाहिए तो है तुमको। क्या चाहिए है, थोड़ा थम के पूछो अपने आप से। एक सावधानी रख लेना, बहुत तेज़ दौड़ते- दौड़ते अपने आप से पूछना मुश्किल हो जाएगा कि- “कहाँ जाना है?”
अगर बहुत तेज़ दौड़ रहे हो, तो सारी ऊर्जा लग जाएगी दौड़ने में ही। ये जान नहीं पाओगे की कहाँ जाना है। थोड़ा थमो, विश्राम लो।
प्रश्नकर्ता: क्या कोई अल्टीमेट डिजायर (आख़िरी इच्छा) नहीं है जिसको हमे प्राप्त करना हो?
आचार्य प्रशांत जी: तुम अल्टीमेट (आख़िरी) हो क्या?
तुम तो वही हो न जो यहाँ बैठे हो, तो तुम अल्टीमेट डिज़ायर (आख़िरी इच्छा) का क्या करोगे? तुम वो हो, जो यहाँ बैठे हो। तुम बात कर रहे हो अल्टीमेट डिज़ायर की, आख़िरी डिज़ायर। तुम ये देखो कि ठीक अभी तुम्हें क्या बेचैनी है, उसको दूर करो।
आख़िरी डिज़ायर कोई नहीं होती, आख़िरी तो आज़ादी होती है।
कामना तुम्हें अभी है या अल्टिमेटली (आख़िर में) होगी? इच्छाओं में अभी लथपथ हो, या अल्टिमेटली (आख़िर में) होगे? अभी हो न? तो अभी देखो इन इच्छाओं से क्या पा रहे हो। इन्हीं के पीछे भागना है एक सौ साठ किलोमीटर प्रति घंटे पर? इससे पहले तुम पूछो कि सही इच्छा क्या है, उन इच्छाओं का तो सर्वेक्षण कर लो जिनके पीछे इतनी ज़ोर से भाग रहे हो।
प्रश्नकर्ता: पर हमें यही नहीं पता कि हम किसके पीछे भाग रहे हैं।
आचार्य प्रशांत जी: ऐसा तो नहीं है, ऐसा बिलकुल भी नहीं है। रोज़ सुबह उठकर तुम्हें नहीं पता होता है कि कहाँ जाते हो गाड़ी उठाकर?