जीवन — अवसर स्वयं को पाने का

नीकौ हूँ लागत बुरौ, बिन औसर जो होय |प्रात भए फीकी लगे, ज्यौं दीपक की लोय ||-नागरीदास

वक्ता: ‘नीक’ माने अच्छा| जो अच्छा भी है, वो बुरा लगता है, यदि बिना अवसर के हो| ठीक वैसे जैसे की दीपक की लौ भी सुबह हो जाने पर व्यर्थ ही होती है| अवसर माने क्या? ये समझना होगा|

सवाल पूछा है प्रिया ने नागरीदास के दोहे से| पूछ रहीं हैं, ‘अवसर माने क्या?’ और दूसरी बात पूछ रहीं हैं, ‘सही अवसर जान नहीं पातीं…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org