जीने के लिए एक बात
7 min readNov 15, 2022
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपने पिछले कुछ सत्रों में कहा कि प्रकृति मुक्ति चाहती है और उसके लिए वो इंसान के शरीर का इस्तेमाल करती है। ये प्रकृति कुछ भी चाह कैसे सकती है?
आचार्य प्रशांत: प्रकृति का काम है चाहना। अभी तुम यहाँ खड़े हो, तुम्हें कहीं भी कुछ भी पूरी तरह से स्थिर, रुका हुआ दिख रहा है क्या? शाम हो रही है, चिड़िया चहचहा रही हैं। जिनको हम चेतन या कॉन्शियस नहीं बोलते वो भी गति कर रहे हैं — सूरज, हवा। प्रकृति में कुछ भी कभी भी…