जिसे चाहते हैं हम चुपचाप
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आचार्य प्रशांत: दुनिया में जो कुछ भी है, छोटा-बड़ा, उससे तुम जो भी संबंध बना रहे हो वो वास्तव में सच की ख़ातिर ही बना रहे हो। ये जो पूरा खेले ही चल रहा है, ये खेल एक परम सत्ता के आधार पर और एक परम सत्ता की लालसा में है। ये उसी से आ रहा है खेल और उसी की ओर जाने के लिए है। चाहे तुम रात में छत पर बैठकर के चाँद को देख रहे हो, चाहे तुम बाग के किसी छोटे फूल के साथ खेल रहे हो, चाहे तुम जीवन में अपने माता-पिता से संबंध बना रहे हो, चाहे अपनी पत्नी से बना रहे हो, अपने पति से बना रहे हो, अपनी बेटी से, अपने बेटे से संबंध रख रहे हो। तुम दुनिया में जो कुछ भी कर रहे हो — उसी से कर रहे हो उसी की ख़ातिर कर रहे हो।