जिसे करना है, वो अभी करता है
आचार्य प्रशांत: आप जो भी बनना चाहते हैं न, जब बनने की इच्छा गहरी होती है और जितनी ज़्यादा गहरी होती है, आप उसको उतनी जल्दी पाना चाहते हैं। यह बात ठीक है?
सभी श्रोता: हाँ।
आचार्य: अगर कुछ तुम्हें वाकई चाहिए, तो तुम यह तो नहीं कहोगे न कि पचास साल बाद मिले। तुम क्या कहते हो? अगर तुम्हें कुछ चाहिए, तो तुम यह तो नहीं कहोगे कि पचास साल बाद मिले। तुम क्या कहोगे कि कब मिल जाए? तुम कहोगे- चलो, पाँच साल के अन्दर-अन्दर चाहिए। है न? तुम्हें और ज़्यादा तीव्रता से चाहिए, तो तुम क्या कहोगे? पाँच महीने में मिल जाए। तुम्हें और तीव्रता से चाहिए, तो तुम क्या कहोगे? पाँच मिनट में और जब तुम वाकई चाहोगे, बिलकुल उसमें बहानेबाज़ी नहीं होगी, तो तुम कहोगे कि ‘अभी’। तुम अपनी चाहत को अभी जीना शुरू कर दोगे। तुम यह नहीं कहोगे कि मुझे यह भविष्य में चाहिए क्योंकि भविष्य तो मात्र बहाना है, उन लोगों का, जिनमें चाहत होती ही नहीं है। जिनमें चाहत होती है, वो बात भविष्य पर टालते ही नहीं हैं। वो कहते हैं- ‘अभी चाहिए’।
तो यदि तुम कुछ पाना चाहते हो, जो भी तुमने कहा। तुम्हें अपने आप से पूछना पड़ेगा कि क्या मेरी चाहत सच्ची है? अगर चाहत सच्ची होगी, तो मैं ठीक अभी ऐसे कदम ले रहा होऊँगा, जो मुझे वो दिला दें। मैं इंतज़ार नहीं कर रहा होऊँगा कि कुछ वर्ष बीतें, कुछ समय। यह बात मैं तुम सब से पूछ रहा हूँ- दावे हम सबके होते हैं कि हमें यह चाहिए और वो चाहिए। पर क्या वाकई चाहिए? क्या वाकई चाहिए?
मैं एक जगह पर गया था; बड़ा नामी एम.बी.ए संस्थान था। तो वहाँ पर फाइनल इयर पास आउट…