जिसने असत्ता जानी शरीर और मन की, वही करेगा खोज अब स्वयं की

एक दिन ऐसा होयगा, कोय काहू का नाही,
घर की नारी को कहै, तन की नारी जाहि।।

~ संत कबीर

आचार्य प्रशांत: कबीर ये नहीं कह रहे हैं कि एक विशेष दिन ऐसा होगा, ऐसा है ही। न घर की नारी तुम्हारी है और न शरीर की नाड़ी तुम्हारी है। तुम्हारे चलाने से शरीर की नाड़ी चल रही है क्या? और तुम किस भ्रम में हो कि तुम्हारे घर की नारी तुम्हारी है। उसके अपने अहंकार हैं, उसके अपने उद्देश्य हैं, वो अपने उद्देश्यों पर तुम्हें चलाने को तत्पर है, वो तुम्हारी कहाँ से हो गई! लेकिन ये बात बहुत साफ़-साफ़ शायद मौत के दिन ही दिखाई देती है कि, ‘मैं जा रहा हूँ पर कोई साथ आने वाला नहीं है।’ वही जो वाल्मीकि क्षण था। इतना ही किया था वाल्मीकि ने कि पूछ लिया था अपनी पत्नी से, क्या पूछा था?

श्रोता: मैं तुम्हारे लिए जो चोरी-डकैती करता हूँ तो अगर मैं नरक जाऊंगा तो क्या तुम साथ आओगे?

आचार्य प्रशांत: बस इतना ही पूछा था उसने कि, ‘साथ आओगे?’ बीवी ने कहा ना; बच्चे ने कहा ना। बीवी थोड़ी ईमानदार रही होगी, आजकल की होती तो कह भी देती कि, ‘हाँ जानू जरुर आउंगी, तुम्हारा एटीएम कार्ड किधर है?’

‘एक दिन ऐसा होयगा, कोय काहू का नाही’।

तुम जो इतनी धारणाएं पाल के बैठे हो कि मेरा ये है और मेरा वो है, नहीं कुछ है ही नहीं तुम्हारा, सिर्फ प्रतीत भर हो रहा है तुमको। मौत के दिन वो प्रतीत होना भी बंद हो जाएगा। लेकिन कबीर ने भी अपेक्षाएं ज्यादा कर ली हैं। तथ्य यह है कि…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org