जिसने असत्ता जानी शरीर और मन की, वही करेगा खोज अब स्वयं की

एक दिन ऐसा होयगा, कोय काहू का नाही,
घर की नारी को कहै, तन की नारी जाहि।।

~ संत कबीर

आचार्य प्रशांत: कबीर ये नहीं कह रहे हैं कि एक विशेष दिन ऐसा होगा, ऐसा है ही। न घर की नारी तुम्हारी है और न शरीर की नाड़ी तुम्हारी है। तुम्हारे चलाने से शरीर की नाड़ी चल रही है क्या? और तुम किस भ्रम में हो कि तुम्हारे घर की नारी…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org