जान लगा के खेलो

जान लगा के खेलो
लगा दो सबकुछ दाँव पर
ताकि खेल खत्म हो सके
और मिले नींद ऐसी उत्कट
जिसमें न सपना न करवट।

जो ऐसे खेल गया
अंतिम नींद सिर्फ़ उसे मिलेगी
वरना बार बार उठना पड़ेगा
जो अधूरा रह गया है
वो पूरा करना पड़ेगा।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org