जानवर को इंसान मत बनाओ

आदमी का प्रकृति से क्या सम्बन्ध है वह सीधे-सीधे बताता है कि आपका खुद से क्या सम्बन्ध है। अगर सारी पुरानी कथाओं में कहा जाता है कि अवतार भी जानवरों का रूप लेकर आ जाते हैं, तो उसका अर्थ समझिएगा। उसमें एक चूक हो सकती है उससे ज़रा बचिएगा। जानवरों को इसान मत बनाइएगा। अक्सर हम जानवरों से दोस्ती का मातलब यह समझते हैं कि जानवरों में हम वही गुण डाल दें, जो इंसानों में है। और अगर नहीं डाल पा रहे तो कम से कम कल्पना करें कि उनमें आ गए हैं। जानवरों को इंसान बनाना सिर्फ़ आपके अहंकार की घोषणा है। आप कह रहे हो, “मैं तुझसे ऊँचा हूँ; मैं तुझे सभ्य कर दूँगा।’’

लोगों को बड़ा फ़क्र होता है “मेरा तोता है, वह पूरी बातें बोलता है।’’ तुम तोते जैसी भाषा क्यों नहीं बोलते? तुम्हें बड़ा अच्छा लगता है कि ”तोता मेरे जैसा बोलता है। मेरा कुत्ता है वह मेरा एक-एक भाव समझता है, एक एक बात समझता है। हिंदी भी समझता है, अंग्रजी भी समझता है।”

जानवरों के पास जाने का अर्थ यह नहीं है कि आप जानवरों को इंसान जैसा बनाने की कोशिश शुरू कर दो। यह तो वैसा ही अहंकार है जैसा वाइट मैन्स बर्डन होता था। वाइट मैन्स बर्डन समझते हैं? यूरोपवासियों को यह भ्रम था कि वह ज़्यादा सभ्य हैं और बाकी पूरी दुनिया को सभ्य बनाना उनकी ज़िम्मेदारी है। तो वह जहाँ कहीं भी गए, उन्होंने अंग्रेजी भाषा फैलाई। उनकी मिशनरीज़ गईं उन्होंने इसाईयत फैलाई, यह वाइट मैन्स बर्डन है।

वही काम हम करना शुरू कर देते हैं। कुत्ता घर में आता है, उसको प्रशिक्षण देना शुरू कर देते हैं। काहे का प्रशिक्षण कि “तू इंसान जैसा हो जा। कुत्ता है ये, यह इंसान जैसा हो गया है न तो बढ़िया है।’’ यह यंत्रणा नहीं है क्या? कपड़े पहनता है, नहाता है, शैम्पू करता है। अरे! तुम कुत्ते जैसे क्यों नहीं हो जाते? तुम चलो चार पांव पर, अगर बड़ा प्यार है कुत्ते से। पर तुम कुत्ते को प्रशिक्षण दोगे कि दो पांव पर खड़ा हो कर हाथ मिलाए। कई लोगो के घरों में कुत्ते होते हैं, वह दो पांव पर खड़े हो कर हाथ मिलाते हैं। मैं उम्मीद करता हूँ कि हममें से किसी के घर में ऐसा नहीं है।

बड़ा अच्छा लगता है, कोई आया हो घर पर “टाइगर, मिसेस गुप्ता से हाथ मिलाओ’’ और बड़ा अच्छा लगता है मिसेस गुप्ता डर के पीछे हो जाती हैं और टाइगर खड़ा हुआ है। कभी नहीं किया, तो टाइगर की शामत है। पेट्स के स्पा होते हैं, प्रशिक्षक होते हैं बड़े महंगे होते हैं वह आपके पेट को सभ्य करते हैं; इंसान जैसा बना देते हैं।

अक्सर जब हम बोलते हैं, “पशुओं पर दया करो तो हम बड़े कृपालु भाव से बोलते हैं।” बड़ा उसमें अहंकार होता है कि दया करो। अपने पर दया कर लो, पशु को तुम्हारी दया की नहीं, दोस्ती की ज़रुरत है। दोस्ती कर सकते हो तो करो और दोस्ती में दोनों बराबर होंगे। दोस्ती में यह नहीं होगा…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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