जानवरों को इंसान मत बनाओ

अक़्सर हम जब बोलते हैं कि पशुओं पर दया करो तो हम बड़े दयाभाव से बोलते हैं, बड़ा उसमें अहंकार होता है कि दया करो।

अपने पर दया कर लो, पशु को तुम्हारी दया की नहीं, दोस्ती की ज़रूरत है। दोस्ती कर सकते हो तो करो, दोस्ती में दोनों बराबर होंगे। दोस्ती में यह नहीं होगा कि मैं ऊपर हूं और पशु नीचे है। तो उस भ्रम से भी बचना है।

गाय को रोटी दे रहे हो, क्यों दे रहे हो? गाय पर दया करके? गाय पर दोस्ती करके दे रहे हो तो अलग बात है पर गाय पर दया करके दे रहे हो तो देख लेना गड़बड़ी हो रही है।

दोस्ती बिल्कुल दूसरी चीज़ है। दोस्ती और प्रेम बिल्कुल आसपास की चीज़े हैं।

प्रेम बिल्कुल दूसरी चीज़ है, वह यह सब दया-वया नहीं जानता, वह आपके बड़े-बड़े काम नहीं जानता। आप बहुत भारी-भारी काम करके आए हो, घर में आपका कुत्ता है, उसको कोई मतलब नहीं है, तुम होगे विश्व के मुखिया, वह पास आएगा और चढ़ जाएगा। आए होगे तुम अंतराष्ट्रीय वार्ताओं में भाग लेकर, मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

तुम्हारी इन वार्ताओं में रखा भी क्या है? वह तुम्हारे मन में बैठी हुई हैं कि इनमें बड़ा महत्व है, प्रकृति कोई नहीं महत्व देती, न तुम्हारे सुख को, न दुःख को, न ऊँच को, न नीच को, न बड़ी बातों को, न छोटी बातों को। उसके लिए सब बराबर है। होगे तुम विश्व के मुखिया, जुकाम का वायरस तुम्हें भी लगेगा। प्रकृति में तुम सब एक बराबर ही हो।

तुम्हारे अहंकार को सबसे बड़ी चोट तो प्रकृति ही मारती है जब तुम्हें पता चलता है तुम्हें वही बीमारी हो गई है जो किसी तुच्चे-से-तुच्चे आदमी को भी हो सकती है।

अब कहाँ गया तुम्हारा अहंकार? तुम तो विशिष्ट थे, ख़ास थे, अद्भुत थे! तुम्हें कौन-सी बीमारी हुई?बवासीर, डेंगू! तुम इतने बड़े आदमी, डेंगू कैसे हो सकता है तुमको!

प्रकृति तुम्हारे अहंकार को कोई वरीयता नहीं देती, कुछ नहीं। प्रकृति भेदभाव नहीं करती, तुम्हारे अहंकार को कोई मान्यता नहीं है वहाँ, बिल्कुल ही कोई मान्यता नहीं है। बराबर करके रख देती है सब कुछ।

उसके साथ नाच सकते हो तो नाच लो, एक हो सकते हो तो हो लो। उससे दूरी बना कर रखोगे, लड़ोगे, उसे वश में करना चाहोगे, नियंत्रण का भाव रहेगा तो फिर ठीक है, बैठे रहो कि हम ख़ास हैं। तुम रह आओ अपनी ख़ासियत में!

जब दोस्ती कर लोगे तो पेड़ भी बोलेंगे। इतनी पुरानी कहानियाँ सुनी है न कि पक्षी ने आकर कुछ बता दिया, जानवर कोई संदेश दे गया। अब संदेश ऐसे नहीं दे गया कि वह हिंदी, अंग्रेज़ी बोल रहा था या कविता सुना कर चला गया।

उसका अर्थ समझिए, कि आप इतने एकरस हो कि आपको वहाँ भी कुछ संदेश मिल जा रहा है। आप उसमें भी कोई अपने लिए सीख ले पा रहे हो, यही अर्थ है इस बात का। जो कहा जाता है कि एक चिड़िया आई और राजा को कुछ बता कर चली गई, रहती हैं न कहानियाँ ऐसी पुरानी कि राजा बैठा था, चिड़िया आई, उसके सामने बैठी और कुछ बताई और चली गई। उसका अर्थ इतना ही है कि राजा का ध्यान इतना गहरा था कि चिड़िया को भी देखकर वह कुछ समझ गया। चिड़िया ने कुछ बताया नहीं, चिड़िया ने बिल्कुल कुछ नहीं बताया, पर राजा का ध्यान ऐसा था कि चिड़िया को देखकर भी समझ गया।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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