जानवरों का बंध्याकरण कितना जरूरी है?

प्रश्न: पशुओं का परिवार नियोजन कैसे करें, और क्या नियोजन करना सही है?

आचार्य प्रशांत: प्रकृति इस बात से बिलकुल सरोकार नहीं रखती कि तुम्हारे जीवन की गुणवत्ता क्या है। उसको सरोकार बस इस बात से होता है कि — जीव कितने हैं? जीवन की गुणवत्ता क्या है, इससे प्रकृति को सरोकार नहीं है। उसे सरोकार है कि — जीव कितने हैं?

स्त्री हो, पुरुष हो, और कैद में हों, तो नपुंसक नहीं हो जाएँगे। वो जेल में भी बच्चे पैदा कर डालेंगे, भले ही जेल में जो बच्चे पैदा हुए हों उनकी ज़िन्दगी नर्क हो। बल्कि संभावना यही है कि स्त्री और पुरुष एकसाथ जेल में हों तो वह और ज़्यादा बच्चे पैदा करेंगे, करने को कुछ और तो होगा नहीं। और प्रकृति नहीं कहेगी कि — “यहाँ पर बच्चे नहीं पैदा होने चाहिए।” लेकिन तुम तो जानते हो न कि जीवन की लंबाई और जीवों की तादाद से ज़्यादा कीमती कोई और बात होती है। क्या है वह बात? गुणवत्ता, क्वालिटी।

तुम अगर प्रकृति को देखोगे, तो जहाँ जितनी ज़्यादा अज्ञानता है, वहाँ उतने ज़्यादा बच्चे हैं।

जहाँ आदमी जितना ज़्यादा अँधेरे में है, वहाँ वह बच्चे ज़्यादा पैदा कर रहा है।

और प्रकृति यही चाह रही है — बच्चे होने चाहिए बस! किसी भी तरीक़े से पैदा हों।

इस सब से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि जितने जीव हैं, वो बोध को प्राप्त हों। नए-नए जीवों का आगमन ज़रूरी नहीं है; जो हैं, उनको एक गरिमामयी, ऊँची, साफ़, प्रेमपूर्ण ज़िन्दगी मिले, यह ज़्यादा जरूरी है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org