जहाँ लालच वहाँ गुलामी

हम जो बार-बार अपनी असमर्थता का रोना रोते हैं, वह कुछ नहीं है, हम एक बड़ा दोहरा खेल खेलना चाहते हैं।

हम कहते हैं, हमारा लालच भी बरकरार रहे और हम गुलाम भी न बनें। यह अब नियमों के विपरीत बात कर रहे हैं आप। आप चाहते हैं कि आपका लालच भी बरकरार रहे और आपको गुलाम भी न बनना पड़े।

जहाँ लालच है, वहाँ गुलामी है। जिसको गुलामी छोड़नी है, उसे लालच छोड़ना होगा।

अगर आप बार-बार पा रहे हैं कि आप गुलाम बन जा रहे हैं, तो देखिए कि क्या-क्या लालच है, उस लालच को हटा दीजिए और गुलामी को हटा दिया आपने।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org