जहाँ डर है, वहाँ प्रेम नहीं
जहाँ डर है, वहाँ प्रेम नहीं। जहाँ डर है वहाँ सत्य नहीं। जहाँ डर है, वहाँ मुक्ति नहीं। कोई बहुत डरा हुआ है, वो आपसे बंध ही जाएगा, चिपक ही जाएगा। इसीलिए नहीं कि उसे प्रेम है आपसे, स्वार्थवश। किसी से प्रेम में एक हो जाना बिलकुल अलग बात है, और अपने डर की वजह से, अपने स्वार्थ की वजह से, किसी को जकड़ लेना बिलकुल दूसरी बात है। तो, फ़रीद हमें समझा रहे हैं कि जो डरा हुआ है, उससे बचो। क्योंकि वो घातक है, नुकसानदेह है।