जवानी जलाने का पूरा और पक्का इंतज़ाम

आचार्य प्रशांत: (प्रश्न पढ़ते हुए) “नाम तो मेरा लक्की है पर मैं बहुत अनलक्की हूँ। मैं पिछले नौ साल से यू.पी.एस.सी. की तैयारी कर रहा हूँ। चार बार फ़ेल हो चुका हूँ, नौ साल से घर से बाहर हूँ और अब घर लौटने में डर लगता है। यू.पी.एस.सी. के अलावा भी सारे एग्ज़ामस (परीक्षाएँ) दे चुका हूँ, उनमें से एक भी एग्ज़ाम (परीक्षा) नहीं निकला। अब तो कॉन्फिडेंस (आत्मविश्वास) इतना कम हो गया है कि क्लर्क (लिपिक) का एग्ज़ाम (परीक्षा) भी नहीं निकल रहा, उम्र तीस हो गई है, पंद्रह-बीस लाख रुपया खर्च हो गया है। सबको लगता है कि मैं कोई बड़ा एग्ज़ाम (परीक्षा) निकालूँगा, पर मुझसे हो नहीं रहा। मेरी असफलताओं के कारण मेरी गर्लफ्रैंड (प्रेमिका) ने भी मुझे कब का छोड़ दिया, क्या करूँ? मोटिवेशनल स्पीकर्स (प्रेरणा देने वाले वक्ता) कहते हैं कि लगे रहो, आज नहीं तो कल सफलता मिलेगी, पर मेरे साथ ऐसा हो नहीं रहा जी।” ~ लक्की रावत, इकतीस वर्षीय, दिल्ली से।

तुम्हें मुझसे डाँट खानी थी, इतना ही लिख दो, “आचार्य जी, डाँट दीजिए।” इतना बड़ा पोथा क्यों लिख कर भेजा है? क्यों चाहिए तुम्हें वो सब जिसके लिए तुम ये दस साल से लगे हुए हो, पंद्रह-बीस लाख खर्च कर चुके हो; मन की, चरित्र की, जीवन की, धन की, आत्मविश्वास की, सबकी दुर्गति कर डाली है। वजह क्या है कि तुमको वही सब नौकरियाँ चाहिए, यू.पी.एस.सी. और सरकारी अन्य नौकरियाँ, जिनके पीछे ये हाल बना लिया है? कोई वजह नहीं है, वजह बस है परम्परा, दूसरों की नज़रों में प्रतिष्ठा और सुरक्षा का लोभ। इस मुद्दे पर पहले भी मैं बोल चुका हूँ और उन वीडियोज़ के नीचे जो थोड़े ईमानदार लड़के होते हैं वो आ कर लिख देते हैं कि, “और बाक़ी बातें तो ठीक हैं लेकिन लड़की वाले लड़की देने के लिए राज़ी नहीं होते अगर सरकारी नौकरी नहीं है। तो और कोई वजह हो न हो, मगर वंश चलाने की ख़ातिर हमें यू.पी.एस.सी…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org