जवानी अकेले दहाड़ती है शेर की तरह

एक छोटा-सा बच्चा होता है, उसे आवश्यकता होती है कि कोई दूसरा उसका फ़ायदा नुक़सान सोचे। एक छोटा-सा बच्चा होता है, पाँच साल का, उसे बिल्कुल ज़रूरत होती है कि कोई उसकी उंगली थामे। पर तुम में से कोई यहाँ छोटा-सा बच्चा नहीं है। तुम में से कोई नहीं है यहाँ पाँच साल का, आठ साल का। कोई अठारह का है यहाँ पर, कोई बीस का है। बीस से ऊपर वाले भी होंगे।

तुम्हारा फ़ायदा कहाँ है कहाँ नहीं, ये खुद जानो ना या अभी भी किसी उंगली पकड़ कर चलने का इरादा है? शारीरिक रूप से तो पूरी तरह युवा हो गए हो, पूरे तरीके से, पर मानसिक रूप से डरते हो कि हम बड़े कैसे हो जाएँ। तो मानसिक रूप से अभी पाँच साल का बच्चा बने रहना चाहते हो कि कोई और आ कर बता दे कि मैं क्या करूँ और क्या ना करूँ। शरीर पूरी तरह से गवाही दे रहा है, चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा है कि आप पूर्ण रूप से बड़े हो गए है, आप पुरुष हैं, आप स्त्री हैं, लेकिन मन धोखे में रहना चाहता है। मन कहता है, “नहीं, नहीं कोई और हमारे हाथ थाम कर चले, तभी ठीक है”।

तुम्हारी उम्र में भगत सिंह फाँसी पर चढ़ चुके थे। वो किसी से पूछने गए थे कि मैं बम फेंकूँ तो इसमें मेरा फ़ायदा है या नुकसान है? और तुम्हारे तर्क पर चले होते तो हो गया था काम। तुम्हारे तर्क पर चले होते तो फिर फ़ोन मिला रहे होते कि पापा बम फेकें या ना फेकें। अपने पाँव पर खड़े हो, अपनी आँखों से देखो, अपने दिमाग से समझो। समझ रहे हो बात को? अपने पाँव पर खड़े हो, अपनी आँखों से देखो, अपने दिमाग से समझो। कोई बहानेबाज़ी नहीं चलेगी। पर क्या करें आदतें बिगड़ गईं हैं। ज़िन्दगी भर बैसाखी पर चले हैं, अब अपने पाँव पर खड़ा होने को…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org