जब श्रीमद्भगवद्गीता ही पूर्ण है तो उत्तर गीता की ज़रूरत क्यों पड़ी?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। कई बार ऐसा होता है कि विरोधी पक्ष के लोग विनीत भाव से मदद वग़ैरह माँगने आ जाते हैं, जैसे दुर्योधन ने शल्य का सहयोग माँगा, दुर्योधन ने बलराम से गदा सीखने का निवेदन किया और दुर्योधन ने श्रीकृष्ण से उनकी नारायणी सेना माँगी। ऐसी स्थितियों में उचित व्यवहार क्या है? कृपया मार्गदर्शन करें।

आचार्य प्रशांत: अब दुर्योधन ने मदद माँगी तो शल्य और बलराम ने जो निर्णय लिया, या दुर्योधन को जो उत्तर दिया या जो व्यवहार किया, वह बहुत विचारणीय नहीं है। शल्य और बलराम कहॉं से अनुकरणीय पुरुष हो गए? और वो ख़ासतौर पर महत्वहीन हो जाते हैं जब उनके सामने श्रीकृष्ण खड़े हों।

तुमने तीन परिस्थितियाँ सामने रखी हैं – दुर्योधन शल्य के पास गया है, दुर्योधन बलराम के पास गया है और दुर्योधन श्रीकृष्ण के पास गया है। पूछ रहे हो, “ऐसी परिस्थितियों में क्या करना चाहिए जब दुर्योधन जैसा कोई मदद माँगने आए?”

ज़ाहिर सी बात है कि ऐसी परिस्थिति में किसका उदाहरण, किसका आदर्श, किसका दृष्टांत मानने योग्य है, अनुकरणीय है? शल्य का? बलराम का? या श्रीकृष्ण का?

श्रोता: श्रीकृष्ण का।

आचार्य: तो वही करो जो श्रीकृष्ण ने करा था। क्या करा था श्रीकृष्ण ने? श्रीकृष्ण ने कुपात्र और सुपात्र को खड़ा करके कह दिया था कि जिसको जो चाहिए हो, ले लो। और माँगने का पहला अधिकार उन्होंने किसको दिया था? सुपात्र को।

दुर्योधन और अर्जुन, दोनों पहुँच गए थे श्रीकृष्ण के पास औपचारिक निवेदन ले करके सहायता का। महाभारत का युद्ध छिड़ने वाला है, दोनों पहुँच गए हैं। अब दुर्योधन दुर्योधन है, उसने क्या करा? वह जाकर सिराहने बैठ गया। भाई…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org