जब घरवाले अध्यात्म की बातें न सुनना चाहें

माँ-बाप का जीवन में एक तल पर बहुत ख़ास स्थान होता है। जब कहीं मैं ये देखता हूँ कि माँ-बाप उस तल से आगे जाकर, अनधिकृत रूप से, बच्चे के मन के दूसरे तलों पर कब्ज़ा कर रहे हैं, तब मैं कहता हूँ कि — “तुम ये गलत कर रहे हो। ये तुम अपने अधिकार से आगे की बात कर रहे हो। बच्चे के जीवन में तुम्हारे जगह निश्चित रूप से है, और बड़ी सम्माननीय जगह है तुम्हारी, लेकिन तुम ‘उस जगह’ पर अधिकार जमा लेना चाहते हो जो जगह तुमको नहीं दी जा सकती।”