जब गुरु दनादन पीटे

बस्स कर जी हुण बस्स कर जी

काई गल असां नाल हस्स कर जी।

तुसीं दिल मेरे विच वस्सदे सी, तद सानु दूर क्यों दसदे सी,

घत्त जादू दिल नु खस्सदे सी, हुण आइयो मेरे वस कर जी।

तुसीं मोयां नूं मार ना मुक्कदे सी, नित्त खिद्दो वांङ कुट्टदे सी,

गल्ल करदे सा गल घुट्टदे सी, हुण तीर लगायो कस्स कर जी।

तुसीं छपदे हो असां पकड़े हो, असां विच्च जिगर दे जकड़े हो।

तुसीं अजे छपन नूं तकड़े हो, हुण रहा पिंजर विच वस कर जी।

बुल्ल्हा शौह असीं तेरे बरदे हां, तेरा मुक्ख वेखण नूं मरदे हां।

बंदी वांगु मिन्नतां करदे हां, हुण कित वल नासों नस कर जी।

।। अनुवाद ।।

बस करो जी अब बस करो।

नाराज़गी छोड़कर हमसे थोड़ा हँसकर कोई बात करो।

यो तो तुम सदा मेरे दिल में वास करते रहे,

किन्तु कहते यही रहे कि हम दूर हैं।

जादू डालकर दिल छीन लेने वाले, अब जाकर कहीं मेरे बस में आए हो।

तुम इतने निर्दयी कैसे हो कि मरे हुए को भी मारते रहे?

और तुम्हारा मारना तो कभी समाप्त न हुआ।

कपड़ों की गेंद की तरह हमें पीटते रहे तुम।

हम बात करना चाहते हैं, तो तुम गला घोंट कर हमें चुप करा देते हो।

और अब की बार तो तुमने हम पर कस कर बाण चलाया है।

तुम छुपना चाहते हो, लेकिन हमने तुम्हें पकड़ लिया है।

पकड़ ही नहीं लिया बल्कि हमने तुम्हें जी-जान से जकड़ लिया है।

हम जानते हैं कि तुम बहुत बलवान हो।

अभी भी भागकर छुप सकते हो।

लेकिन अब तो तुम हमारे अस्थि-पिंजर में ही रहो।

बुल्ला कहता है कि- हे प्राणपति! हम तो तुम्हारे परम दास हैं।

तुम्हारा मुख देखने के लिए तरस रहे हैं।

बंधी की तरह अनुनय-विनय कर रहे हैं।

इस विनय के सामने भला अब दौड़ कर किधर जाओगे?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम, बुल्लेशाह कह रहे हैं कि गुरु उन्हें गेंद की तरह पीटता है और उस दिल की बात बताने जाते हैं तो उन्हें जबरदस्ती चुप करवा देता है। बुल्लेशाह जी की ये फ़रियाद शायद उन दिनों की है, जब उनके गुरु ने उन्हें आश्रम से निकाल दिया था। आचार्य जी, जैसे बुल्लेशाह जी ने अपनी पूरी मेहनत लगाकर…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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