जब ऋषि-मुनि नग्न घूम सकते हैं, तो आम नारियाँ क्यों नहीं?

जब ऋषि-मुनि नग्न घूम सकते हैं, तो आम नारियाँ क्यों नहीं?

प्रश्नकर्ता: आप कहते रहते हैं कि जिसको जिसमें सहजता हो और सुविधा हो वो वैसे कपड़े पहने। आप ये भी कहते हैं कि ऋषियों को, मुनियों को स्वेच्छापूर्वक वस्त्र धारण करने का अधिकार है, उन्हें कुछ पहनना हो तो पहनें, न पहनना हो तो ना पहनें।

बहुत सारे पुराने ऋषि हुए हैं, संत हुए हैं, जो नाममात्र के कपड़े धारण करते थे, और मुनि, विशेषकर दिगंबर जैन मुनि तो बहुधा कुछ भी धारण नहीं करते। वो लोग जब कम कपड़े पहनते हैं या निर्वस्त्र रहते हैं, तब तो सर आप उनका समर्थन करते हैं, लेकिन लड़कियाँ, महिलाएँ जब कम कपड़ों में बाहर घूमती हैं तो आपने उसके विरोध में कुछ कहा हुआ है। तो क्या ये बात विरोधाभासी नहीं है?

आचार्य प्रशांत: बात को समझना होगा, दो-तीन तल हैं बात को समझने के।

देखिए कर्म नहीं कर्ता प्रमुख होता है। क्या कर रहे हो आप, उसके पीछे करने वाला कौन है — ये बात देखी जाती है; करने वाले की नीयत क्या है, करने वाला अपनी नीयत से पहचाना जाता है l एक ही काम होता है, दो लोग करते हैं, वो एक ही नहीं रह जाता न? आप किसी की ओर बढ़ रहे हैं, आप उसकी ओर उसकी सहायता करने के लिए भी बढ़ सकते हैं, आप उसकी ओर उसको नुकसान पहुँचाने के लिए भी बढ़ सकते हैं।

अगर सिर्फ़ वीडियो बनाया जाए, जिसमें दिखाया जाए कि दो अलग-अलग मामले हैं जिसमें एक व्यक्ति दूसरे की ओर बढ़ रहा है, तो दोनों वीडियो बिलकुल एक-से दिखेंगे, लगेगा कि एक ही तो काम हो रहा है। नहीं, एक ही काम नहीं हो रहा, भीतर नीयत में बड़ा अंतर है। आप किसी की ओर हाथ बढ़ा रहे हैं, मदद…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org