जब आलस के कारण कुछ करने का मन न हो

जो तामसिक अवस्था में हैं, उनके लिए तो आवश्यक है कि वो पहले राजसिक की ही कोशिश करें। जो सोए हुए हैं, उनसे मैं नहीं कहता, ठहर जाओ।

तमस से सत् में सीधे जाना बड़ा दुष्कर है। तुम रजस को दाँव दे कर, धोखा दे कर, बाईपास कर के सीधे सत् में प्रवेश नहीं कर पाओगे। वो घटना करोड़ों में एक बार होती है। और जो सतोगुण में ही नहीं प्रवेश कर रहा, वो गुणातीत में क्या प्रवेश करेगा? तो अगर तुम्हारी हालत आलस से भरी हुई है तो तुम तो दौड़ना सीखो, तुम तो शरीर को मजबूत बनाओ, तुम तो ज़रा संसार में निकलो और वहाँ कुछ सार्थक कर के, सिद्ध कर के, यत्न कर के दिखाओ। जो खटिया तोड़ रहा हो, मैं उससे नहीं कहता कि, “तू खटिया पर बैठे-बैठे ही राम भज”। वो तो खुश हो जाएगा, कहेगा, “ये देखो, अध्यात्म और तमस तो बिलकुल साथ-साथ चलते हैं। कुछ करना नहीं है, खटिया पर बैठो, राम भजो और दाता के नाम पर भिक्षा माँग लो, कोई न कोई तो होगा ही दिल का कमज़ोर, वो दे जाएगा।”

अध्यात्म का अर्थ है: परमात्मा के अलावा जो कुछ भी है तुम्हारे पास, वो छोड़ना। जिसके पास धन है, वो छोड़ेगा धन, और जिसके पास आलस है, वो छोड़ेगा आलस। जो भी तुम्हारे पास है, वो छोड़ो। मात्र वही मूल्यवान है, उसको अपने पास रखो। और यदि धन छोड़ने के लिए कोई विधि लगती है तो उस विधि को अपनाओ। वो विधि है — ज्ञान, वो विधि है — सत्संग, वो विधि है — ग्रंथ। आलस छोड़ने के लिए भी यदि कोई विधि लगती है तो उस विधि को अपनाओ। हो सकता है आलस छोड़ने की विधि ये है कि तुम्हें धनोपार्जन करना पड़े तो तुम धन कमाओ। धन इसलिए नहीं कमाओ कि धन मूल्यवान है, धन इसलिए कमाओ ताकि तुम्हारा…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org