जब आलस के कारण कुछ करने का मन न हो!

जब आलस के कारण कुछ करने का मन न हो!

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आजकल कुछ भी मन नहीं करता करने क — न धन के लिए, न ध्यान के लिए। आलस से भरा रहता हूँ। कुछ कहें।

आचार्य प्रशांत: कौन कह रहा है कि मन कुछ भी करने का नहीं करता? आलस करने का नहीं करता? मन यदि कुछ नहीं कर रहा है तो आलस कौन कर रहा है? ये कैसा वक्तव्य है? जो ध्यान के लिए भागे, सो मन सतोगुणी — आपने कहा, “ध्यान का मन नहीं करता”। जो धन के लिए भागे, सो मन रजोगुणी — आपने कहा, आप धन के लिए भी नहीं भागना चाहते। और इन दोनों से भी निकृष्ट अवस्था में जो मन है, वो न ध्यान के लिए भागता है, न धन के लिए भागता है, उसे बस अजगर की तरह सोना है, वो तमोगुणी मन है। क्यों कह रहे हो कि कुछ भी करने का मन नहीं करता? मन तो कर ही रहा है कि अभी सो जाएँ। कौन ध्यान का कष्ट उठाए! कौन सत्संग सुने! सो ही जाओ! आलस में पड़े रहो! न ध्यान, न धन, मात्र तन।

ये कोई मन से अतीत अवस्था नहीं है। ये कह कर के ये नहीं बता रहे हो कि मन अब संसार से उठ गया है। ये कह कर के यही बता रहे हो कि मन अब और निम्न कोटि की तरफ सरक रहा है। सुनो ध्यान से, यदि ध्यान संभव हो तो, अध्यात्म कहता है कि “धन छोड़ो,” यह मान्यता बहुत प्रचलित है। प्रचलित है न? न! अध्यात्म धन इत्यादि मात्र उन्हें छोड़ने के लिए कहता है जिनके पास धन हो। जो है नहीं उसको छोड़ोगे कैसे? ये ऐसी ही बात है कि भिखारी को जाकर कोई उपदेश दे कि, “बच्चा, धन में कुछ रखा नहीं है, त्यागो”। वो हक्का-बक्का खड़ा है, कह रहा है, “मैं त्यागूँ? अभी ये फटा कच्छा है, यही बचा है त्यागने को।”

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org