जब असफलता से आत्महत्या का विचार आए

स्वयंसेवक (प्रश्न पढ़ते हुए): आचार्य जी, जिस तरीक़े के परिवेश में मैं पला-बढ़ा हूँ और अभी-भी अपना दिन बिताता हूँ, और जैसा समाज भी है, उसमें छोटे-छोटे क़दमों पर असफलता और छोटे होने का भाव लगातार मेरे सामने आता रहता है। इतनी असफलताएँ दैनिक रूप से देखने के बाद मुझ में आत्महीनता पैदा हो रही है, और फिर अवसाद एवं आत्महत्या करने का मन होता है। इस मनोजाल से मुझे बाहर निकालिए।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org