जब अपने मन और जीवन को देखकर डर लगे
मन मलिन है, वृत्तियों में विकार है, कोई शक नहीं, बात घाटे की है इसमें कोई शक नहीं। जो मन से संबंधित सारे विकार, सारे भाव लेकर पैदा हुआ है, वो पैदा ही घाटे में हुआ है, वो घाटा तो रहेगा ही रहेगा, वो तयशुदा है। हमारे साथ कुछ ऐसा पैदा होता है, जो हमें बड़ा घटा के रखता है, जो हमें शुद्र करके रखता है, जो चीज़ तुम्हें घटा के रखे, वो घाटे की।
अहंकार तो चीज़ ही ऐसी है कि उसको देखो तो कपने लग जाओ, पसीने छूट जाएँ, इसलिए तो उसे देख पाने की ताकत बहुत कम लोगों में होती है। वहाँ पर तुम्हारी पूरी ज़िन्दगी की बर्बादी लिखी हुई है, तुम्हारी सब हारे लिखी हुई है, तुम्हारे पूरे जन्म का एकदम व्यर्थ चला जाना लिखा हुआ है, उससे तुम कैसे आँखें मिला पाओगे?
याद रखिएगा वो जो घाटा है, कमजोरियाँ है, गलतियाँ है, वो सबके पास होती है। छोटे आदमी और बड़े आदमी में अंतर ये नहीं होता कि छोटे आदमी में कमजोरियाँ नहीं है, बड़े आदमी के पास कमजोरियाँ मात्र नहीं थी, उनके पास उन कमजोरियों के आगे भी कुछ था। तो कभी भी किसी संत को इस आधार पर मत आँक लीजियेगा कि इसमें भी देखो तृष्णा, कामना या क्रोध है, उसके पास कुछ और भी है जो शायद आपने नहीं कमाया।
झूठे, बेईमान आदमी की निशानी ये ही होती है कि वो अपनी कमजोरियों की चर्चा ही नहीं करना चाहता, वो ऐसा नाटक करता है, जैसे की उसमें कमजोरियाँ हो ही न। जो असली आदमी है, वो सबसे पहले अपनी कमजोरियों को पकड़ेगा, स्वीकारेगा, प्रदर्शित करेगा ताकि उनके आगे जा सके।
हम अक्सर ये गलती कर जाते हैं कि हमारे भीतर जो विकार है, क्षुद्रताएं हैं, कमजोरियाँ हैं, हम उनसे लड़ने बैठ जाते हैं। उनसे लड़ना नहीं होता है, आपको उनके होते हुए भी उनकी उपेक्षा करनी है। शरीर से आगे का कुछ कमाइए, वो इतना प्यारा होगा, मूल्यवान होगा, फिर ये जो रोज़मरा का लफड़ा लगा रहता है, देह का, मन का, आपको फुर्सत ही नहीं रह जाएगी इन सबके लिए।
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