जब अपने मन और जीवन को देखकर डर लगे
मन मलिन है, वृत्तियों में विकार है, कोई शक नहीं, बात घाटे की है इसमें कोई शक नहीं। जो मन से संबंधित सारे विकार, सारे भाव लेकर पैदा हुआ है, वो पैदा ही घाटे में हुआ है, वो घाटा तो रहेगा ही रहेगा, वो तयशुदा है। हमारे साथ कुछ ऐसा पैदा होता है, जो हमें बड़ा घटा के रखता है, जो हमें शुद्र करके रखता है, जो चीज़ तुम्हें घटा के रखे, वो घाटे की।