जब अपनी हालत से निराश होने लगें
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, बहुत पहले से देख रहा हूँ। इमैजिनेशन (कल्पनाएँ करने) की आदत है। अब यहाँ तीन महीने से हूँ तो इसे और गहराई से देखने के लिए मिला। बहुत ज़्यादा गहराई तक है यह।
मैं सही-सही बताऊँ तो कोई मुझसे बात करता है तो मुझे उसकी आधी बात सुनाई ही नहीं देती। अगर तुरंत मुझसे पूछा जाए कि उसने क्या बोला, तो आधे से ज़्यादा बार तो मुझे पता ही नहीं चलता कि उसने क्या बोला।
जैसे आप कहते हैं कि सार्थक कर्म में डूबो तो ये चीज़ें कम हो जाती हैं। सार्थक कर्म में डूबने के लिए भी शुरू में थोड़ा एफर्ट (प्रयास) करना पड़ता है और उसमें बार-बार ऐसा लगता है असफल हो जा…