जन्माष्टमी कैसे मनाएं

जन्माष्टमी को कृष्ण के जन्मदिवस के रूप में न मनाएं, बड़ी फज़ीहत की बात है क्योंकि कृष्ण तो वो हैं जो अर्जुन को बता गये हैं कि, “आत्मा न तो जन्म लेती है न मरती है; सत्य न तो आता है न जाते है।” जो कृष्ण समझा गये हों कि जन्म-मृत्यु कुछ होता ही नहीं, उनका जन्मदिवस मनाना बड़ी गड़बड़ बात है। तो इस रूप में तो बिलकुल मना मत लीजियेगा कि आज कोई बच्चा पैदा हुआ था।

जन्माष्टमी को मनाने का जो सुन्दर तरीका है वो यही है कि इसे कृष्ण का नहीं अपना जन्म दिवस मानें।

“मैं जैसे साल भर जीता आ रहा हूँ अब वैसे नहीं जियूँगा, आज पुनः जन्म होगा मेरा”

कृष्ण का तो कोई जन्म होता नहीं क्योंकि कृष्ण कभी मरे ही नहीं; हम हैं जिन्हें जन्म की आवश्यकता है क्योंकि हम कभी पैदा हुए नहीं।

जन्माष्टमी को ऐसे ही मनाइये कि साल भर की हबड़-दबड़ में एक दिन का आपको मौका मिला है ठहर जाने का, ये ठहरना ही नया जन्म है क्योंकि हम जो चल रहे हैं वो अपने बन्धनों के कारण चल रहे हैं, ठहरने का मतलब हो जायेगा कि बन्धनों पर नहीं चल रहे हैं; आज़ादी हुई, ये आज़ादी ही नया जन्म है।

कृष्ण की ओर न देखें अपनी ओर देखें, कृष्ण की ओर देखेंगे तो अपने आप को देखने से फ़िर चूक जायेंगे और कृष्ण के नाम पर आप देखेंगे किसको? आप कृष्ण की छवियों को ही देखेंगे, और वो छवियाँ किसने बनायीं? आपने। तो बड़ी गड़बड़ हो जानी हैं, एक अच्छा अवसर फ़िर चूक जाना है, आप वो सब कुछ करते जायेंगे जो आपके साल भर के व्यवहार का हिस्सा है; जन्माष्टमी पर भी आप वही करते जायेंगे।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org