जन्माष्टमी कैसे मनाएँ?

प्रश्नकर्ता: बासठ साल हो गए मुझे जन्माष्टमी मनाते हुए, आज आप उपलब्ध हैं यहाँ तो ये सवाल है मेरा कि जन्माष्टमी उत्सव का क्या अर्थ है और इसे कैसे मनाएँ?

आचार्य प्रशांत: दो तरीके से देख सकते हैं — एक तो ये कि कृष्ण-पक्ष के आठवें दिन जन्म हुआ था इतिहास में एक बच्चे का और वो बच्चा कौन था? वासुदेव का और देवकी का आठवाँ पुत्र और उसके साथ आप जितनी ऐतिहासिक बातें जोड़ सकते हैं, जोड़ दीजिए कि चढ़ी हुईं थीं यमुना, और उस बालक को एक टोकरी में रखकर, सर पर ले गए, और फिर यशोदा मैया हैं और पूरा बाल्यकाल है — या तो ऐसे देख लीजिए।

या ये कह दीजिए कि ये जो हमारा पूरा वर्ष रहता है, इसमें हम लगातार समय में ही जीते हैं, और समय बड़ा बंधन है हमारा, तो देने वालों ने हमको एक तोहफा दिया है ऐसा जो समय में होकर भी समय से आगे की याद दिलाएगा।

जन्माष्टमी को कृष्ण के जन्मदिवस के रूप में न मनाएँ, बड़ी फज़ीहत की बात है क्योंकि कृष्ण तो वो हैं जो अर्जुन को बता गए हैं कि, “आत्मा न तो जन्म लेती है न मरती है; सत्य न तो आता है न जाता है।” जो कृष्ण समझा गए हों कि जन्म-मृत्यु कुछ होता ही नहीं, उनका जन्मदिवस मनाना बड़ी गड़बड़ बात है। तो इस रूप में तो बिलकुल मना मत लीजिएगा कि आज कोई बच्चा पैदा हुआ था।

जन्माष्टमी को मनाने का जो सुन्दर तरीका है वो यही है कि इसे कृष्ण का नहीं अपना जन्म दिवस मानें।

“मैं जैसे साल भर जीता आ रहा हूँ अब वैसे नहीं जियूँगा, आज पुनः जन्म होगा मेरा।”

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org