जन्मदिवस पर, जन्मदाता को

अपने पर्व पर
मुझे जन्म दिया
लगा मुझे
मैं कृतकृत्य हुआ

पर जैसे-जैसे समझ बढ़ी
वैसे-वैसे प्रश्न उठा
जो जगत तुमसे ही छल करता
उसमें मुझे भेजा क्यों भला

जिस संसार में दुर्पयुक्त होता
तुम्हारा ही निशान है
उस संसार में बोलो फिर
मेरा क्या स्थान है?

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org