जग को साफ़ जानने के लिए मन साफ़ करो

सवाल यह है कि कैसे जानूं कि सच्चा दोस्त कौन है, नकली कौन है, कौन मेरे सामने मुखौटा लगा कर खड़ा हुआ है? मैं पूछ रहा हूँ कि जानने वाला कौन है? इन सब का निर्धारण करने वाला कौन है? ‘मैं जानना चाहता हूँ कि मेरे जीवन में कौन असली है और कौन नकली है’ ये जानेगा कौन? मैं ही तो जानूंगा न? अपने ही मन से जानूंगा, अपने ही दृष्टि से देख कर। अगर मेरी ही आँख साफ़ नहीं है, तो क्या मैं दूसरों को साफ़-साफ़ देख पाऊँगा?

तुम्हारा सवाल है दूसरों के बारे में। मैं सवाल को विपरीत कर रहा हूँ। अब मैं सवाल कर रहा हूँ तुम्हारी अपनी नज़र के बारे में क्योंकि जानने वाले तो तुम ही हो न, निर्णय तो तुम ही सुनाओगे न, तुम ही तो घोषणा करोगे कि यह असली है और यह नकली है।

जब निर्णय करने वाला, वो जो वहाँ बैठा हुआ है, न्यायाधीश! (मन की और इंगित करते हुए) जब उसने जम कर शराब पी रखी हो, तो वह निर्णय कैसे करेगा? कैसे निर्णय करेगा? उल्टे-पुल्टे ही तो।

तो यह मत पूछो कि मैं कैसे जानूं कि जीवन में कौन असली है, कौन नकली है? यह पूछो कि मैं अपना मन साफ़ कैसे करूँ। फिर सब जान जाओगे! असली, नकली सब स्पष्ट दिख जाएगा। अभी तुम्हारी असली-नकली की जो परिभाषा है, वो भी हो सकता है नकली हो! क्या तुमने गौर किया इस बात पर? अभी तो असली, नकली की जो परिभाषा है, वो देखो न कैसी है। तुमने दोस्तों की बात की, तुम कहते हो, ‘जो ज़रुरत में काम आए, वो मित्र’। तुमने देखा नहीं है कि यह कैसी नकली परिभाषा है। तुम कह रहे हो कि जो तुम्हारी ज़रूरतों को पूरा करे, वो तुम्हारा दोस्त है।

पहले खुद जग जाओ, फिर दुनिया साफ़-साफ़ दिखाई देगी। सब दिख जाएगा।

अब दूसरी बात पर आते हैं। यदि असली बात यही है कि मुझे खुद जगना है, यदि असली बात ये नहीं है कि लोग कैसे हैं, कि मतलबी हैं, चालबाज़, लुटेरे, या भले हैं, अगर असली मुद्दा यह है कि मेरी आँखें साफ़ होनी चाहिए, मेरे जीवन में स्पष्टता होनी चाहिए, तो फिर मेरा दोस्त कौन होगा?

अगर सर्वप्रथम मुझे यह देखना है कि मेरा मन साफ़ रहे, मेरी दृष्टि पैनी रहे, मैं होश में रहूँ, तो मेरा दोस्त कौन हुआ? मेरा दोस्त वो हुआ जो मुझे होश में लाने में मदद करे। मेरा दोस्त वो हुआ, जिसकी मौजूदगी में मुझे नकली न होना पड़ता हो। मेरा दोस्त वो नहीं जिसके सामने मैं पाँच मुखौटे पहनूँ और वो कहे कि पाँच और पहन ले।

मेरा दोस्त वो जो मुझसे कहे, ‘दोस्त तुझे किसी मुखौटे की ज़रूरत नहीं है’। मेरा दोस्त वो जो मुझसे कहे, ‘तू सुन्दर है, तू पूरा है, तू क्यों डर रहा है, तू अपने आप को जान और तू जैसा है भला है’। वो होगा मेरा दोस्त।

मेरा दोस्त वो नहीं हुआ जो मुझे और नशों में डाल दे! भविष्य के नशे, आकर्षणों

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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