जगत को पूरा सम्मान दो। वैसा ही सम्मान जैसे दो दिन के फूल को दिया जाता है।

दो दिन का फूल सिर्फ दो दिन के लिए आया है, सम्मान तो उसे फिर भी देते हो न?

पर याद रखते हो कि ये दो दिन का है। उससे चिपक नहीं जाते।

ये स्वस्थ चेतना है। वो जगत को देखती है, जगत से खेलती है, पर लगातार याद रखती है कि ये दो दिन का फूल है।

अभी आया, अभी जाएगा!

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org