छोटी बातों में उलझे रहोगे तो बड़ा काम कब करोगे?

प्रश्न: आचार्य जी, आपके वीडियो में एक बात सुनी थी, वो बात मन में ठहर गई। अब जो भी हरकत करता हूँ, जो भी गलती करता हूँ, तो उस वीडियो में सुनी उस बात को याद कर लेता हूँ, और उसी के संदर्भ में सीखने का प्रयास करता हूँ।

आपने कहा था कि एक लाख तेईस हज़ार चार सौ छप्पन (१,२३,४५६) में से ‘एक (१)’ को मिटाना, ‘एक (१)’ को हटाना ही असली कला है, साधना है। ‘एक (१)’ को हटा दिया तो सीधे घटकर तेईस हज़ार चार सौ छप्पन (२३,४५६) बच जाएगा।

मैं ‘छह (६)’ और ‘पाँच (५)’ को तो हटा देता हूँ, ‘एक (१)’ का मुझे दूर-दूर तक कोई पता ही नहीं है। इतनी सूक्ष्म दृष्टि ही नहीं है कि उस ‘एक (१)’ को देख पाऊँ; ‘छह (६)’ और ‘पाँच (५)’ में अदल-बदल करता रहता हूँ और थक जाता हूँ।

कृपया मार्गदर्शन करें।

आचार्य प्रशांत: १ वही है जो तुम्हारा ध्यान ५ और ६ पर केंद्रित रखता है। मिल गया १? मैंने कहा था कि तुम्हारी समस्याएँ १,२३,४५६ हैं। १,२३,४५६ तुम्हारी समस्याएँ हैं, तुम १ पर आक्रमण करो, ज़्यादातर मामला सुलझ जाएगा। फिर जब १ पर कर लो, तो २ पर करो।

हम उलटा करते हैं। हम उलझे रह जाते हैं — ५ और ६ के साथ।

५ और ६ में तुमने अगर फ़तह पा भी ली, तो किस काम की?

तो अब पूछा है इन्होंने कि, “मैं तो बड़ी कोशिश करता हूँ, लेकिन ५ और ६ में ही उलझा रह जाता हूँ, १ का मुझे कुछ पता ही नहीं लग रहा है।” मैंने कहा, “१ सामने ही तो है; १ वही है जो तुमको ५ और ६ में उलझाए रखता है।”

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org