छूटता तब है जब पता भी न चले कि छूट गया
प्रश्नकर्ता: सर, मेरा नाम प्रशांत है। मैं आपसे मिलने नहीं आना चाहता था। पर आया हूँ। मेरा सवाल यही है।
आचार्य प्रशांत: प्रशांत ने कब चाहा है कि प्रशांत से मिले। पर प्रशांत की नियति है प्रशांत से मिलना।
मिले नहीं हो, मिले हुए थे।
प्र: नहीं समझा।
आचार्य: कभी सोये हो अपने प्रेमी के साथ? अँधेरे में? साथ होता है, आलिंगनबद्ध, ह्रदय से लगा हुआ। और तुम चैन से सो रहे होते हो उसके साथ, पूर्ण विश्राम में। पर क्या उस प्रेमपूर्ण शांति में चेतना होती है तुम्हें कि साथ में कौन है? ज़रा भी जानते हो कि…