चोट मिले तो आभार
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उपचार करने से पहले अनुग्रह करो। हम यहाँ इसलिए बैठे हैं न कि मन का, जीवन का सच पता चले। क्यों सच चाहिए? क्योंकि सच ही भरोसे के काबिल होता है।
अहम् जीवन के यथार्थ के सामने चोट खता है, तिलमिलाता है। अहम् कल्पना में जीता है, वो ज़मीन पर नहीं उतर पाता है।
ज़िन्दगी जब भी दर्द दे, तुम्हारी ओर से आभार उठना चाहिए, किसी ने तुम्हारी आँखों से पर्दा उठा दिया है। ये न कह देना कि दे दी है चोट, ऐसे कहना कि दिखा दी मेरी खोट। ये घटना नहीं घटती तो हमें पता कैसे चलता कि हम कितने पानी में है? अच्छा हुआ ये घटना घटी, आँखों पर से पट्टी हटी।
याद रखना ये तुम्हारी प्राकृतिक प्रतिक्रिया नहीं होने वाली। प्राकृतिक प्रक्रिया कभी मुक्ति की ओर नहीं ले जाती। तुम्हें इस प्रतिक्रिया से अलग होना है। हर चीज जो जीवन में कष्ट दे, उसके प्रति अनुग्रहित रहना है। जो जीवन के कष्टों को भगाता है उससे चिपक जाते हैं कष्ट।
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