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चोट खाए अहंकार, माफ़ करे अहंकार

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एक कहावत है, ‘मुक्त आकाश में तुम कील नहीं गाड़ सकते, कील गाड़ने के लिए दीवार का होना ज़रूरी है’। इसका अर्थ समझो- कि कील भी, जिसमें इतनी धार है, खुले आकाश का कुछ नहीं बिगाड़ सकती; काट नहीं सकती, उसको पीड़ा नहीं पहुँचा सकती है। कील भी तुम्हें तब ही पीड़ा पहुँचा पाएगी जब तुम में अहम की दीवार खड़ी हो वरना कोई आएगा कील लेकर और तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। तुम पीड़ित ही इसलिए होते हो क्योंकि अहंकार है। सच तो यह है कि अहंकार के अलावा और कुछ पीड़ित हो ही नहीं सकता। जब भी पीड़ित महसूस होना तो समझ लेना कि अहंकार है क्योंकि अहंकार के अलावा कुछ होता ही नहीं है पीड़ित होने के लिए। पीड़ित जब भी हो, तो सामने वाला जो कर रहा है, सो कर रहा है पर वह तुम्हारे भीतर चोट तभी पहुँचा सकता है जब तुम में अहंकार हो वरना वह चोट पंहुचा ही नहीं सकता।

हर उम्मीद अहंकार से ही निकलती है। अगर मेरा अहंकार कहता कि, ‘मैं भारतीय हूँ ‘, और भारत और ऑस्ट्रेलिया का मैच चल रहा है, तो क्या मैं उसे निष्पक्ष होकर देख पाऊँगा? तुरंत क्या उम्मीद आएगी? भारत को जीतना चाहिए। हर उम्मीद के पीछे अहंकार बैठा है।

अभी हमें अहंकार हटाने का कोई कारण ही नहीं मिला है। अभी तो हमने ठीक-ठीक समझा ही नहीं है कि उसके पेंच क्या हैं। वह कितना घातक है, यह हमने समझा कहाँ है? समझ गए तो उसको हटाना बिलकुल स्पष्ट हो जाएगा। क्या तुम आज तक कोई ऐसा मैच देख पाए हो जिसमें भारत खेले और तुम कहो कि मुझे फ़र्क नहीं पड़ता कौन जीते और कौन हारे, मैं तो यह देख रहा हूँ कि बॉलिंग कितनी प्यारी हो रही है? कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तेंदुलकर बोल्ड हो गया है, मैं तो तब…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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