चेतना के चार तल
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प्रश्नकर्ता: जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय ये चार अवस्थाएँ क्या हैं?
आचार्य प्रशांत: इसका जो शास्त्रीय तरीक़ा है बताने का, शुरुआत वहाँ से करेंगे। दस तो मानी गई हैं इंद्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ। और उसके अलावा होता है अन्तःकरण। अन्तःकरण क्या? अन्तःकरण चतुष्टय, जिसमें चार आते हैं। कौन से चार? जो अंदर के हैं।
इन्द्रियाँ वो, जो सीधे-सीधे बाह्य जगत से संपर्क रखती हैं। और अन्तःकरण चतुष्टय में वो आते हैं चार जो अंदर-अंदर बैठे हैं, जो सीधा संबंध नहीं रखते हैं बाहरी जगत से। वो चार क्या हैं? मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार। ठीक है?
तो इनको आधार बनाकर के चेतना की इन तीन अवस्थाओं की विवेचना की जाती है। जागृतअवस्था वो है चेतना की जिसमें ये चौदहों सक्रिय हैं। जहाँ ये चौदहों सक्रिय हैं, वो अवस्था मानी गई जागृति की। चौदहों सक्रिय हैं माने आँखें कुछ भीतर ला रही हैं, जो भीतर आ रहा है, वो स्मृति के द्वारा एक नाम पा रहा है। चित्त उसको पुराने अनुभवों से जोड़कर देख रहा है, अहंकार उसके साथ संबंध बना रहा है और मन उसका उपयोग करके विचार और कल्पनाएँ कर रहा है। चौदहों सक्रिय हैं जागृत अवस्था में।
कुछ आया तुम्हारे भीतर तुम्हारी त्वचा के स्पर्श से, तुम्हारे कानों में पड़े शब्द से: रंग, रूप, रस, गंध, शब्द। इन्द्रियों के ये सब जो विषय होते हैं तो ये सब विषय इन्द्रियों के द्वारा भीतर प्रवेश कर रहे हैं और भीतर जो यंत्र काम कर रहा है वो इस भीतर आई जानकारी पर, इस भीतर आए डाटा (जानकारी) पर कुछ कारवाई करके किसी तरीक़े का कोई उत्पाद तैयार कर रहा है, जिसके द्वारा फ़िर जीव कुछ अनुभव करता है और कर्म करता है। ये जागृत अवस्था हुई। ठीक है?
ये जो जीव है, इसका अहंकार अगर अनुभवों से बहुत लिप्त है और अनुभवों के फल का बड़ा लोभी है तो फ़िर ये जो अहंकार है, ये इस बात की भी प्रतीक्षा नहीं करता कि बाहर से कुछ माल-सामग्री आए तो मैं उसके साथ संबंध बनाऊँ, तो मैं उस पर कुछ प्रक्रिया करूँ। वो अहंकार फ़िर कहता है, बाहर से सामग्री नहीं भी आ रही, तो भी हम कल्पना का इस्तेमाल करके कुछ-न-कुछ माल तैयार कर लेंगे। इस अवस्था को कहते हैं स्वपनावस्था।
जागृति में तो अनुभव लेने के लिए आवश्यक है कि तुम्हारे सामने कोई खड़ा हो। मान लो तुम पैसे के पुजारी हो, तो जागृति में पैसे से संबंधित अनुभव तुम्हें कब होगा? जब आँखें कम-से-कम पैसे को देखें, हाथ पैसे को छुए, कानों में पैसों से संबंधित कुछ बातचीत पड़े। जागृति में अनुभव लेने के लिए इंद्रियों का सक्रिय सहयोग आवश्यक है। इन्द्रियों की सक्रियता आवश्यक है, है न?
स्वप्न में तो तुम्हें इन्द्रियों की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। तुम्हारा अहंकार इतना लिप्त हो चुका है भोग से कि वो कहता है कि “आँखों से मुझे धन दिखाई पड़ रहा हो, चाहे न दिखाई पड़ रहा हो, मैं तो साहब कल्पना कर लूँगा। और कल्पना कर-कर के ही अनुभव के मज़े लूट लूँगा।" जो…