चाहे कृष्ण कहो या राम
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, सांसारिक दृष्टि से, श्रीकृष्ण को सोलह गुणों का धनी माना जाता है और श्रीराम को बारह गुणों का धनी माना जाता है, ऐसा क्यों? उनमें क्या कोई भेद है?
आचार्य प्रशांत: राम ने मर्यादा के चलते, अपने ऊपर आचरणगत कुछ वर्जनाएँ रखीं, कृष्ण ने नहीं रखीं है। तो ये जो गुणों का भेद है, इसको आप ऐसे ही मान लीजिए कि राम ने स्वयं अपने आपको वंचित किया- “ये सब नहीं करूँगा।” कृष्ण ने कभी अपने आप पर कोई रोक लगाई ही नहीं उन्होंने कहा- “जब जैसी ज़रूरत लगेगी, वैसा आचरण होगा जनाब! हम किसी तरह का कोई वचन नहीं देते, हम कोई वादा नहीं करते और वादा हम करते भी हैं अगर, तो ‘वादा रखेंगे’, ये वादा नहीं करते।”
अब जयद्रथ, पहले तो सूरज छुपा दिया और जब वो बुद्धू बनकर बाहर आ गया, नाचना ही शुरू कर दिया उसने ‘हैप्पी हॉलिडेज़’ तो सूरज को पुनः प्रकट कर दिया और इतना ही काफी नहीं था इस पूरी लीला से दूर, उसके बेचारे पिता जी बैठे हैं कहीं, तप कर रहे थें। जिन्हें पता भी नहीं कि ये सारा काण्ड चल रहा है।
पिता जी की गलती ये कि उन्होंने बेटे की रक्षा के लिए वरदान माँग रखा था कि — “जो कोई इसका सिर काट कर के जमीन पर गिराए, उसका सिर सौ टुकडों में बँट जाए।” तो न जाने कहाँ वो बैठे, पेड़ के नीचे, संध्या कर रहे होगें, सूरज ढल रहा है और अर्जुन के बाण पर जयद्रथ का सिर जाकर उन्हीं की गोदी में गिरता है। वो कहते हैं- “हैं! ये क्या?” और खड़े होते है, उन्हीं का सिर फट जाता है।
कृष्ण ने कोई पाबंदी नहीं रखी। कुछ भी हो सकता है। एक बूढ़ा आदमी, सन्यस्थ, दूर कहीं किसी वृक्ष के नीचे बैठ…