चालाक आदमी को उसकी चालाकी ही भारी पड़ती है

चालाक आदमी को उसकी चालाकी ही भारी पड़ती है

आचार्य प्रशांत: देखो, अंधविश्वास आज के ज़माने में बहुत आगे नहीं बढ़ सकता है। विज्ञान इतना फैला हुआ है कि अब अंधविश्वासी होने का कोई वास्तविक डर बचा नहीं है, या है भी तो बहुत कम है। आज अन्धविश्वाश से कहीं ज़्यादा बड़ा जो ख़तरा है वह ख़तरा है अश्रद्धा का। आप कहते हो कि, “मुझे अन्धविश्वाशी नहीं होना, लेकिन करियर में आपका पूरा विश्वास है”, यह अंधविश्वास नहीं है?

पुराने समय में अन्धविश्वाश का मतलब होता था भूत-प्रेत, जादू-टोटके वगैरह में विश्वास करना, और आज आप जिन चीज़ों में विश्वाश करे जा रहे हो बिना जाने वह क्या है, वह अंधविश्वास नहीं है? अंधविश्वास की तो परिभाषा ही यही है न कि जाना नहीं, समझा नहीं यकीन कर लिया — वो अन्धविश्वाश है।

तो आप भी तो हज़ारों चीज़ों में यकीन करते हो। बल्कि आपके सारे ही यकीन ऐसे हैं जिनके बारे में आप ज़्यादा जानते नहीं हो पर चूँकि दुनिया उन यकीनों पर चल रही है तो आप भी उन पर चल रहे हो, तो यह अंधविश्वास नहीं है? अंधविश्वास उस रूप में अब बिलकुल नहीं है जिस रूप में पहले था लेकिन रूप बदल कर के पूरे तरीके से मौजूद है अंधविश्वास।

जहाँ कहीं भी अश्रद्धा रहेगी वहाँ अंधविश्वास को रहना ही रहना है।

आपके सामने ख़तरा, मैं दोहरा रहा हूँ, यह नहीं है कि पुराना अंधविश्वास आपके ऊपर हावी हो जाएगा। पुराना अंधविश्वास अब नहीं आ सकता लेकिन नया अंधविश्वास तो है न सामने।

देखिए कि ज़िंदगी में आप जिन-जिन चीज़ों को आधार बनाए हुए हो मानते हो कि यह तो सही हैं, वह सब क्या है। आपको वास्तव में…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org