चाँद से आगे ले गया भारत को चंद्रयान

प्रश्न: आचार्य जी प्रणाम। हाल ही में एक घटनाक्रम हुआ, जिसमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा चंद्रयान-२ प्रक्षेपित किया गया। पूरे विश्व की उसपर नज़रें थीं। यह भारतीय वैज्ञानिकों की ओर से एक बहुत बड़ा कदम था। बिलकुल अंतिम क्षणों में भारतीय वैज्ञानिक इस पूरे मिशन में थोड़ी सी गुंजाइश से चूक गए। इसरो के अध्यक्ष इस विफलता पर बहुत भावुक भी हुए। जैसा सोचा गया था, वैसा परिणाम नहीं आया। इसमें पूरा लक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन फिर भी विज्ञान की दृष्टि में, विज्ञान के क्षेत्र में इसको किस तरह से देखा जाए?

इसके बारे में कुछ कहें।

और, अध्यात्म और विज्ञान का क्या सम्बन्ध है? आप हमेशा कहते हैं, “तथ्यों को देखना और तथ्यों पर जीना”। तो क्या अध्यात्म और विज्ञान साथ-साथ चलते हैं? कृपया इसपर थोड़ा प्रकाश डालें।

आचार्य प्रशांत जी: बहुत विस्तृत क्षेत्र खोल दिया तुमने।

सबसे पहली बात तो ये कि ये उतनी भी बड़ी दुर्घटना नहीं है जितना कई लोग समझ रहे हैं। ये जो मिशन था इसके तीन हिस्से थे। पहला — ‘ऑर्बिटर’ की स्थापना, जो ऑर्बिट में रहेगा और चक्कर काटेगा। दूसरा ‘लैंडर’ था, और तीसरा ‘लैंडर’ के भीतर ‘रोवर’ था। ‘लैंडर’ और ‘रोवर’ का काम कुल चौदह दिन का था। ‘लैंडर’ का तो इतना ही काम था कि वो उतरेगा, और फ़िर वो पृथ्वी से संपर्क करेगा। ‘रोवर’ का काम था कि वो ‘लैंडर’ से बाहर निकलकर जाएगा, और फ़िर वो थोड़े चन्द्रमा की ज़मीन पर परीक्षण करेगा, तस्वीरें खींचेगा।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org