चलना काफी है
मारग चलते जो गिरे, ताको नाही दोस । कहै कबीर बैठा रहे, ता सिर करड़ै कोस ॥ -कबीर
वक्ता: जो चलते हुए गिरता है उसका दोष नहीं है, जो बैठा रहता है उसके सिर पर कोटिक पाप हैं। क्या कह रहे हैं कबीर? आप क्लास लेने जाते हो, वहाँ कोई तीन छात्र बैठे हैं। तीनों का पहला सेशन है। अगले दिन तीनों ही सेशन में अनुपस्थित हो जाते हैं। आप पता करते हो की बात क्या है, की आए क्यों नहीं।
पहला बोलता है, ‘मैं इसलिए नहीं आया क्योंकि आप जो कुछ बताने जा रहे हो, वो मुझे पहले से पता है’। दूसरा कहता है, ‘मैं इसलिए नहीं आया, क्योंकि आपने जो कुछ कहा वो मुझे कुछ समझ में ही नहीं आया। जब मुझे समझमे ही नहीं आया, तो आने से…