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चतुर व्यापारी बाँटता ही जाता है,और बाँटने हेतु पाता है
“मनु ताराजी चितु तुला तेरी सेव सराफु कमावा”
~ नितनेम (शबद हज़ारे)
वक्ता: मन तराज़ू, चित तुला है — ‘मन’ तराज़ू है, ‘चित’ तुला है, और ‘तेरी सेवा’ वो कमाई है जो सर्राफ़ा इस पर तोल-तोल कर करता है। नानक के यहाँ पर पुश्तैनी काम यही था। अब तो पढ़ ही लिया होगा आपने, महीने भर से पढ़ रहे हैं जपुजी साहब, नानक का पुश्तैनी काम क्या था?
श्रोता १: व्यापार।
वक्ता: कृषि उपज में व्यापार। यही करते ही यही थे। नानक दस महीने घूमते-फिरते रहते थे। बहुत घुमते थे। अरब, पूरा घूम आए, हिंदुस्तान में इधर बिहार की छोर तक हो आए, थोड़ा-सा दक्षिण की ओर भी गए, सब पूरा घूम लिए। और उन दिनों कोई शताब्दी (एक रेल गाड़ी का नाम) नहीं थी, कि फ्लाइट पकड़ लिए।
श्रोता २: पैदल जाते थे?
वक्ता: पैदल नहीं तो कोई और छोटा-मोटा वाहन होगा। बड़ी बात यह है कि घूमने के बाद साल भर में एक-दो महीने को वापस आ जाते थे, अपने घर। हर साल नानक, साल भर घूमते थे, और एक-दो महीने के लिए वापस आ जाते थे, क्यों?
श्रोता २: खेती करनी होती थी।
वक्ता: मन तराज़ू है, चित तुला है और तेरी सेवा सर्राफ़ की कमाई है।
श्रोता ३: सर, किसकी सेवा? “तेरी सेवा”, किसकी सेवा?
वक्ता: अब तुमने बोल दिया न “तेरी”, बोलने-बोलने में अन्तर है। नानक ने भी एक बार बोला था — “तेरा”। वो “तेरा” पर ही अटक गए थे। ये कहानी तो पता ही होगी। किसको…