घर जल रहा हो, तो एकांत ध्यान करना पाप है

जब घर में आग लगी हो तब एकांत में बैठकर ध्यान करना मूर्खता ही नहीं, पाप है और अभी घर में आग लगी हुई है।

आज के युग में एक ही तरह का ध्यान संभव है और सम्यक है और वो ध्यान है अनवरत, अथक, अगाध कर्म।

जब समय तुमसे अथक कर्म की उम्मीद कर रहा हो, उस वक़्त तुम कहो कि मैं एकांत में बैठकर मौन ध्यान लगा रहा हूँ, तो मेरी नज़र में यह गुनाह है।

शांति यदि ध्येय है तो कर्म ध्यान है और जब अशांति दुनिया पर छा चुकी हो तब शांति को धेय्य बनाते हुए तुम्हें कर्म करना ही पड़ेगा।

जीवन तुमसे माँग कर रहा है कि तुम रणक्षेत्र में कूद जाओ, जूझ जाओ, अर्जुन हो जाओ। और अर्जुन कृष्ण से कहे कि नहीं योगिराज लड़ने की जगह मैं योगासन करूँगा , तो ये मूर्खता है।

इस समय में शांति सिर्फ़ युद्ध के बीचों-बीच सम्भव है। कमरा बंद करके और आँखें बंद करके नहीं!

अभी अगर तुम्हें अचलता चाहिए तो तुम्हें चलाएमान होना पड़ेगा।

घर में घुसकर चटाई बिछा कर ध्यान लगाने का वक़्त नहीं है ये, बाहर निकलो और जूझ पड़ो, स्वधर्म को समझो, युगधर्म को समझो। धर्म समय निरपेक्ष थोड़ी ही होता है, आज के समय को देखो फ़िर समझ में आएगा कि तुम्हारा धर्म क्या है। इस वक़्त धरती के करोड़ों प्राणी, पशु और नदियाँ, पहाड़ सब चित्कार कर रहे हैं, सब तुम्हें बुला रहे हैं कि आओ हमें बचाओ और तुम कहते हो नहीं, हमें तो जो खाली समय मिलता है उसमें हम एकांत ध्यान करते हैं तो ये ध्यान व्यर्थ ही नहीं है, अपराध है!

ध्यान क्या है? अर्जुन के गांडीव से छूटता हुआ एक-एक बाण ध्यान है।

पर ऐसा ध्यान तुम्हारें मन में आता ही नहीं क्योंकि तुम्हारें मन में ध्यान की एक छवि बैठ गई है। और वही ध्यान की छवि बाज़ारों में बीक रही है, बेचने वाले बेच रहें हैं और तुम ख़रीदे जा रहे हो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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