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घर के कोने में आसन मारकर बैठ जाना, वो ध्यान नहीं होता। नकली है सब!

तुम में सर्वप्रथम तुम्हारी वर्तमान हालत के प्रति आक्रोश होना चाहिए, उबाल होना चाहिए, यही ध्यान है।

आज़ादी ध्येय हो, तब जीवन ही ध्यान है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant
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Written by आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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