घरेलू हिंसा, बलात्कार, और वीरता भरा विरोध!

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, किसी के साथ कुछ गलत हो रहा है, तो अध्यात्म से कैसे उसे रिलीफ(राहत) मिल सकता है?

आचार्य प्रशांत: राहत मिलने की बात क्या है, अगर कुछ ग़लत हो रहा है तो उस वक्त जितनी भी आपकी सामर्थ्य है, अधिकतम वो करिए।

अगर आप अधिकतम वो कर रही हैं जो आपकी सामर्थ्य है, तो उसके बाद दुःख नहीं रह जाता। आपने जब अपने आपको पूरा झोंक दिया तो फिर आपने उसको भी झोंक दिया जो बाद में पछताता।

वो भी नहीं बचा। पछताओगे तो तब न जब कोई बचेगा पछताने के लिए।

अरे भाई, लड़ाई हारने के बाद अफसोस किसको होता है? जो लड़ाई हारने के बाद भी ज़िंदा है। लड़ाई में अपने आपको पूरा झोंक दो। जो पछताता, उसको शहीद हो जाने दो। अब पछताएगा कौन? पछताने के लिए बचो ही मत; बचोगे तो पछताओगे। अगर काम सही है तो उसमें अपने आपको पूरा क्यों नहीं झोंक रहे? पूरा ना झोंकने की सज़ा ये होती है कि कुछ बच जाता है, और जो ये बच जाता है वही बाद में पछताता है।

शहीद हो जाओ, अब क्या पछताना? शहीद होने के बाद कोई पछताता है? पूरा समर्पित हो जाओ न। कुछ गलत हो रहा है तो आधा-अधूरा विरोध क्यों कर रहे हो? फिर दिल-ओ-जान से करो न। नहीं तो पछताओगे बाद में। और पछतावा याद रखो इसी बात का होता है कि, “मैंने झेल क्यों लिया? क्यों अपने आपको बचा लिया? क्यों बचा लिया?” तुम ये नहीं पछताते कि कोई और आया था तुम पर आक्रमण करने; वास्तव में पछतावा, शर्म और ग्लानि इसी बात की होती है कि तुमने अपने साथ वो सब कुछ होने दिया और तब भी ज़िंदा रहे। कुछ बहुत ही गलत…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org