घरेलू हिंसा, बलात्कार, और वीरता भरा विरोध

अगर कुछ ग़लत हो रहा है तो उस वक्त जितनी भी आपकी सामर्थ्य है, अधिकतम वो करिए। अगर आप अधिकतम वो कर रही हैं जो आपकी सामर्थ्य है, तो उसके बाद दुःख नहीं रह जाता। आपने जब अपने आपको पूरा झोंक दिया तो फिर आपने उसको भी झोंक दिया जो बाद में पछताता, वो भी नहीं बचा। पछताओगे तो तब न जब कोई बचेगा पछताने के लिए।

बलात्कार सिर्फ यही नहीं कि किसी स्त्री का हो गया, बलात्कार तो सब का होता है। मानसिक बलात्कार तो सब का चल ही रहा है, शोषण तो सभी का हो रहा है, सब बलत्कृत हैं। आम आदमी का दिन में दस बार बलात्कार होता है; ऑफिस में, घर में, बाज़ार में, बस में, ट्रेन में, बलात्कार ही बलात्कार है।

जहाँ कहीं भी तुम्हारी मुक्ति के विरुद्ध तुम्हारे साथ कुछ किया जाए, वही बलात्कार है।

सिर्फ यौन हिंसा ही बलात्कार थोड़ी कहलाती है। क्यों झेलते हो उस बलात्कार को? जितना झेलोगे बाद में उतना ही पछताओगे।

फना हो जाने का अपना मज़ा है, आज़माओ। सब से ज़्यादा ग्लानि कायरता की होती है।

तुम उसमें शहीद क्यों नहीं हुए? उसने जो किया सो किया, वो ज़बरदस्त था; तुम इतना तो कर सकते थे कि शहीद हो जाते। क्यों बचा कर रखा अपने आपको? कायरता से बड़ा पछतावा किसी चीज़ का नहीं होता मन को। तुम अपने आपको हर चीज़ के लिए माफ कर सकते हो, बुज़दिली के लिए नहीं। उसका भी कारण आध्यात्मिक है। आत्मा अनंत है, अनंत उसका बल है, और आत्मा स्वभाव है तुम्हारा, अनंत बलशाली होते हुए भी तुमने क्यों…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org