घट-घट में बसा है वो!

घट-घट में बसा है वो

ततः परं ब्रह्म परं बृहन्तं यथा निकायं सर्वभूतेषु गूढम्‌। विश्वस्यैकं परिवेष्टितारमीशं तं ज्ञात्वाऽमृता भवन्ति॥

जो उस जीवजगत से परे हिरण्यगर्भरूप ब्रह्मा से भी अत्यंत श्रेष्ठ है, जो अत्यंत व्यापक है, किन्तु प्राणियों के शरीरों के अनुरूप उन सब प्राणियों में समाया हुआ है, सम्पूर्ण जगत को अपनी सत्ता से घेरे हुए उस महान परमात्मा को जानकर विद्वान पुरुष अमर हो जाते हैं।

~ श्वेताश्वतर उपनिषद् (अध्याय ३, श्लोक ७)

आचार्य प्रशांत: क्या कहा गया है? “वो जो हिरण्यगर्भरूप ब्रह्मा से भी अत्यंत श्रेष्ठ है।” हिरण्यगर्भ या ब्रह्मा क्या हैं? वो आदमी के मन की उच्चतम अभिकृति हैं। जो तुम ऊँचे-से-ऊँचा सोच सकते थे वो हैं ब्रह्मा या हिरण्यगर्भ। हिरण्यगर्भ मतलब प्रथम पुरुष, जिनके होने के बाद समस्त अस्तित्व का जन्म हुआ उनसे।

तो पूरे अस्तित्व की जहाँ से शुरुआत होती है, इस दुनिया में ही जो बिलकुल प्रथम बिंदु है, उसका नाम है ‘हिरण्यगर्भ’। ऋषि कह रहे हैं, हमें ये याद रखना है कि उनसे भी श्रेष्ठ कोई है। तो पहले तो मन को ऊँचा, ऊँचा, ऊँचा, और ऊँचा, और ऊँचा उठाओ, अधिकतम और उच्चतम जहाँ तक मन को ले जा सकते हो, ले जाओ और फिर अपने-आपको याद दिलाओ कि ‘अब जब मैं यहाँ आकर के ठहर गया, इसके पार जो है वो सत्य है।’

सत्य मन की उड़ान या मन की ऊँची कल्पना में नहीं है। उच्चतम कल्पना, उच्चतम सिद्धांत, उच्चतम शब्द जहाँ पर जाकर के रुक सा जाता है, उसके पार जो है वो सत्य है।

और इसीलिए सत्य उनको नहीं मिल सकता जो इस संसार में उच्चतम के अभिलाषी ना हों। कारण मनोवैज्ञानिक है। अगर आप संसार में ही कुछ ऊँचा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं तो आपकी आशा ये बँधी रहती है कि अभी थोड़ा कुछ और ऊँचा मिल जाएगा और उसमें तृप्ति हो जानी है। ‘अभी तो यहाँ ही जो मिलना है, मैं वही नहीं हासिल कर पाया। तो यहाँ जो मिलना है उसको हासिल करता हूँ और उसकी उपलब्धि से ऐसा लगता है कि मैं तृप्त हो जाऊँगा।’

सत्य उनके लिए है, मुक्ति उनके लिए है जो बड़ी ऊँचाइयाँ हासिल करें दुनिया में और उन ऊँचाइयों के बाद उनको दिखाई दे कि यहाँ नहीं है। इसका अर्थ ये नहीं है कि जीवन के हर क्षेत्र में आपको अग्रणी या प्रथम स्थान पर होना चाहिए। इसका अर्थ ये है कि जीवन में कहीं पर तो आपने उत्कृष्टता हासिल करी हो, कहीं पर तो आपकी उपलब्धि बेजोड़ हो। और तब आपको पता चलता है कि आपकी उच्चतम उत्कृष्टता और ऊँची उपलब्धि के क्षण में भी भीतर कुछ खाली रह गया है। तब आप समझते हो कि वो जो चीज़ है जो मुझे चाहिए, वो इसके पार की है; ये वो नहीं।

ब्रह्मा या हिरण्यगर्भ का संबंध पार से नहीं है, वो इसी संसार के हिस्से हैं। इस संसार के कौनसे हिस्से हैं वो…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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