ग्रंथों में नारियों को सम्मान क्यों नहीं देते?
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्।।
हे अर्जुन! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापयोनि चाण्डालादि जो कोई भी हों, वे भी मेरे शरण होकर परमगति को ही प्राप्त होते हैं।
—श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय ९, श्लोक ३२
प्रश्नकर्ता: इसमें मेरे दो प्रश्न हैं। पहला तो यह कि आखिर हर ऋषि कहीं-न-कहीं स्त्री को ही निम्न कोटि में डाल करके बात करता है। दूसरा — कई बार आपने समझाया है कि यह मन की ही दो स्थितियों की बात है, अगर ऐसा भी है तो इस…