गृहिणी के लिए बाधा क्या?

गृहिणी के लिए बाधा क्या?

प्रश्न: आचार्य जी, मुक्ति के मार्ग में एक गृहिणी के लिए क्या-क्या बाधाएँ आती हैं?

आचार्य प्रशांत जी: तुम्हारी जो पूरी गति हो रही है किसकी ख़ातिर हो रही है? कौन बैठा है उस गति के केंद्र में? किसको तुम सबसे अधिक महत्त्व दे रहे हो? प्रथम कौन है तुम्हारे लिए? महत्त्वपूर्ण, केंद्रीय कौन है तुम्हारे लिए? यही देखना होता है।

कोई अपने दफ़्तर के चक्कर काट रहा है, और कोई गृहिणी है, वो घर के कमरों के ही चक्कर काट रही है। दोनों में कोई विशेष अंतर नहीं है। एक ने केंद्र में रखा हुआ है पैसे को, और दूसरे ने केंद्र में रखा हुआ है परिवार को। परमात्मा को तो दोनों ने हीं केंद्र में नहीं रखा है। दोनों हीं भूल गए कि प्राथमिक क्या होना चाहिए।

तो जब यह कहा जाता है कि — “गृहिणी भुलाए बैठी है,” तो इसका यह मतलब नहीं है कि बाज़ार में जो व्यापारी है, दफ़्तर में जो कामकाज़ी है, जो व्यवसायी है, नौकरी-पेशा है उसको याद है। न! जो गृहिणी भुलाए बैठी है, वो बाज़ार में बैठा है, वो भी भुलाए बैठा है क्योंकि दोनों ने ही अपने दायरे बना लिए हैं। और उन दायरों के केंद्र में सत्य तो नहीं है, कुछ और ही है।

गृहिणी अपने लिए मजबूरियाँ और बढ़ा लेती है। बताओ क्यों? क्योंकि वो अपने लिए जो दायरा बनाती है उस दायरे में न सिर्फ़ केंद्र ग़लत है, बल्कि उस दायरे में सलाखें भी हैं।

भूलना नहीं कि देह जीव की एक बड़ी मजबूरी है। होगे तुम आध्यात्मिक, होगे तुम कोई भी, देह का पालन तो करना ही है, पेट तो चलाना ही है न। साधारण ही सही, कपड़ा तो चाहिए ही होता है। गृहिणी अपने लिए

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org