गुस्से की मूल वजह क्या?

गुस्सा इच्छा के न पूरा होने पर आता है, आपने कुछ चाहा आपको वो मिला नहीं, आप उबल पड़े।

जीवन इच्छाओं से जितना संचालित होगा, उतनी संभावना होगी न कि इच्छा पूरी नहीं हो रही हो। गुस्सा तो सिर्फ़ उस क्षण में आया जब ये प्रकट हो गया कि इच्छा नहीं पूरी हो रही है और इच्छा पाली हुई थी बड़े लंबे समय से। दिन भर इच्छा को पोषण और प्रोत्साहन दिया और जब इच्छा को प्रोत्साहन दे रहे थे तब बड़ा अच्छा-अच्छा लगता था क्योंकि इच्छा वादा होती है कि सुख मिलेगा। जब तो इच्छा को पनपा रहे थे और फैला रहे थे, तब तो ऐसा लगता था जैसे जन्नत और लगता था जैसे जन्नत तो और इच्छा बुलाईं।

इच्छा पूरी न हो तो क्रोध को जन्म देती है और इच्छा पूरी हो जाए तो और इच्छाओं को जन्म देती हैं।

समाधान सिर्फ़ एक है, देखलो कि इच्छा का अर्थ क्या है। दबाओ नहीं इच्छा को, बस समझलो, उसकी पोल खोल दो, अब उससे मिलेगी आज़ादी। क्रोध लक्ष्ण है, क्रोध तुम्हें बताता है कि तुम इच्छाओं के गुलाम हो, क्रोध तुम्हें बताता है कि विवेक नहीं है तुममें, तुम किसी भी चीज़ को अपनी इच्छा बना लेते हो। जो चीज़ चाहने लायक नहीं है, उसको चाहत बना लिया, अब उबलते-उबलते घूम रहे हो, तो तुम ही बेवकूफ़ हो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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