गुलामी की लंबी ज़िन्दगी बेहतर, या आज़ादी के कुछ पल?

प्रेम में तो जिसकी जितनी सामर्थ्य होती है, करता है। बराबरी की बात थोड़ी चलती है उसमें। तुम छोटे बच्चे को एक मिठाई दे देते हो तो तुम उससे उम्मीद करते हो क्या कि वो भी तुम्हें पलट कर देगा? जितनी तुम्हारी सामर्थ्य, तुमने किया, जितनी हमारी सामर्थ्य, हमने किया। और अगर तुम्हें इतनी ही उम्मीद थी कि हम पैसे लौटाएँगे, तो भाई हम पर लगाते मत।

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org