गुलामी की लंबी ज़िन्दगी बेहतर, या आज़ादी के कुछ पल?

प्रेम में तो जिसकी जितनी सामर्थ्य होती है, करता है। बराबरी की बात थोड़ी चलती है उसमें। तुम छोटे बच्चे को एक मिठाई दे देते हो तो तुम उससे उम्मीद करते हो क्या कि वो भी तुम्हें पलट कर देगा? जितनी तुम्हारी सामर्थ्य, तुमने किया, जितनी हमारी सामर्थ्य, हमने किया। और अगर तुम्हें इतनी ही उम्मीद थी कि हम पैसे लौटाएँगे, तो भाई हम पर लगाते मत।

ज़िन्दगी, देखो बेटा, ऐसे जियो कि मरने के लिए हमेशा तैयार रहो। मौत डरावना सपना उन्हीं के लिए होती है जो ठीक से जी नहीं रहे होते। और तुम जितना कमज़ोर जीवन जी रहे हो, मरने से उतना ज़्यादा डरोगे।

जीवन समय है, और वो समय तुम्हें मिला है जीवन के आखरी लक्ष्य को पाने के लिए और वो आखरी लक्ष्य है मुक्ति। मुक्ति तुमसे जितनी दूर होगी, तुम उतना तड़पोगे और ज़िंदा रहने के लिए। तुम कहोगे “अभी और समय चाहिए। जिस काम के लिए दुनिया में आए थे वो काम तो अभी पूरा ही नहीं हुआ, तो अभी और समय चाहिए।” वो काम झटपट पूरा कर लो फिर मौत के लिए तैयार रहोगे।

और जो मौत के लिए तैयार है उसके जीवन में बात दूसरी होती है। उसको तुम डरा नहीं सकते क्योंकि मौत का डर और बाकी सारे छोटे-मोटे डर एक ही हैं। जो मौत से नहीं डर रहा वो किसी चीज़ से नहीं डरेगा।

अंततः तुम डर तो मौत से ही रहे हो भले ही एक छिपकली से डरो, चाहे बन्दूक से डरो, और चाहे ठण्ड से डरो, और चाहे अपमान से डरो। अपमान का डर हो या छिपकली से डर हो, ये सारे डर ले-देकर मृत्यु के ही डर हैं, और मृत्यु का डर इसलिए सताता है क्योंकि ज़िन्दगी बर्बाद कर रहे…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org