गुरु वो जो तुम्हें घर भेज दे

अनुकम्पा में कोई चुनाव नहीं है। अनुग्रह, कृपा, अनुकम्पा, जो भी उसको बोलो, उसमें कोई चुनाव ही नहीं है कि तुम बोलो कि काश मुझे भी उपलब्ध हो जाए। ऐसा कुछ नहीं है। सूरज की रोशनी की तरह है। और ये बड़ा अच्छा उदाहरण है, सूरज की रोशनी। पहली बात तो, सूरज की कोई विशेष इच्छा नहीं है कि धरती को चमकाना है। सूरज का होना ही प्रकाश है। दूसरी बात, सूरज कोई चुनाव नहीं कर रहा है। जो कुछ भी ‘है’, उसे प्रकाश उपलब्ध ही है। तीसरी बात, तुम्हें कुछ कर-कर के प्रकाश अर्जित नहीं करना है।

तुम क्या करोगे प्रकाश अर्जित करने के लिए? तुम्हारा होना ही काफी है। हाँ, अगर तुमने अपने आप को किसी कोठरी में क़ैद कर रखा है, तब ज़रूर तुम्हें कुछ करना होगा। और क्या करना होगा? बाहर आना होगा। और बाहर भी तुम क्यों आओगे? कोठरी में हो, वहाँ तुम्हारी सुरक्षा है, तुम्हारी आदत है, वहाँ तुम्हारे सम्बन्ध बन गए हैं। बाहर भी क्यों आओगे? तुम रोशनी की तरफ क्यों बढ़ोगे? इस बात को ध्यान से समझना। हम रोशनी का उदाहरण ले रहे हैं, उसे हम अनुकम्पा का, अनुग्रह का, प्रतीक बना रहे हैं। हम जानना चाह रहे हैं कि कोई अनुकम्पा की तरफ क्यों बढ़ता है, क्यों उसे उपलब्ध होता है। पहली बात तो ये है कि वो सदा उपलब्ध है, तुम्हें उपलब्ध होना है। तुम क्यों उपलब्ध होओ उसे? तुम उसे उपलब्ध सिर्फ इसलिए होते हो क्योंकि तुम्हें उसकी याद आती है। मैं बड़े सरल शब्दों में बोल रहा हूँ।

अँधेरे में रहते आदमी के पास कोई कारण नहीं है रोशनी की तरफ जाने का, सिवाय इसके कि उसे रोशनी की याद आती है। इसी बात को मोटे और शास्त्रीय और क्लिष्ट शब्दों में भी कहा जा सकता है। पर उसको…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org