गुरु चाहिए ही क्यों? चेतना के दो तल

गुरु और शिष्य वास्तव में दोनों तुम्हारे अंदर की इकाईयाँ हैं। वो ही बाहर स्थूल रूप से तमाम तरीकों से दिखाई पड़ती हैं। जो तुम्हारा मन है, ये कुछ बातें समझता नहीं है, थोड़ा अनाड़ी है। मन को हम कह देते हैं शिष्य या चेला। मन सीखने के लिए आतुर है।
मन सीखने के लिए जिसके पास जाना चाहता है उसका नाम है गुरु। आत्मा हुई गुरु। मन की शांति का ही नाम आत्मा है। मन को आत्मा चाहिए। आत्मा का ही दूसरा नाम हुआ गुरु।