गीता में कृष्ण के अनेकों नाम

गीता में कृष्ण के अनेकों नाम

आचार्य प्रशांत: हम सबके भीतर, हम कितना भी छुपा लें, पर होता है कोई जो सत्य को छोड़ नहीं सकता। हम स्वयं को कितना भी भ्रम में रख लें, एक तल पर सच्चाई हम सबको पता होती है। वास्तव में अगर सच्चाई पता ना हो तो स्वयं को भ्रम में रखने का कोई औचित्य भी नहीं है।

तो शंखनाद होता है दोनों सेनाओं की ओर से और संजय बताते हैं कि शंखनाद में विशेषतया धृतराष्ट्र के पुत्रों के, कौरवों के हृदय में हलचल कर दी, मन उनके कंपित हो गए, हृदय विदीर्ण हो गया। ये सुनने के बाद अब आते हैं दूसरे पक्ष पर, अर्जुन की ओर क्या चल रहा है। संजय कह रहा है —

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वज:

प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डव: ।।20।।

हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।

अर्जुन उवाच

सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत । । 21 । ।

“राजन! उसके अनंतर, उसके बाद कपिध्वज; (अर्जुन के ध्वज पर कपि चिन्ह था; कपिध्वज), पांडव (अर्जुन) ने धृतराष्ट्र के पुत्रों को युद्ध के लिए अवस्थित देखकर और अस्त्र संचालन करने के लिए उद्यत होकर धनुष उठाकर ऋषिकेश ‘कृष्ण’ से कहा, ‘हे अच्युत! उभय (दोनों) सेनाओं के मध्य में मेरा रथ स्थापित करो’।“

~ श्रीमद्भगवद्गीता गीता, श्लोक २०–२१, अध्याय १, अर्जुन विषाद योग

आचार्य: हम जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे, हमें श्रीकृष्ण के कई नाम सुनने को मिलेंगे। तो ‘केशव’, ‘ऋषिकेश’ और अभी यहाँ पर कहा ‘अच्युत’; अच्युत…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org